मेरी कविता में बसती है बस मेरी भावना
विनती है कि भावना का लगे ##1## ना
सब पढ़ते हैं सुनते हैं पर समझते हैं वो
मात्र मात्रा की गलती पर जो खाते ##2## ना
मेरा ही लहू हो और मेरी ही कलम
किसी और का कुछ लगे ##3## ना
जो पहले से हैं वही कुरेदें हैं मैंने
नए सिरे से मैंने किये ##4## ना
कलम टेढ़ी न हो तो मैं लिख पाता नहीं
सीधी पतवार से तो माझी खेतें ##5## ना
धूप से है जीवन और धूप से है विकास
छालों के डर से मुसाफ़िर मांगे ##6## ना
आज़ादी का मतलब मैं समझ पाया नहीं
लीक से हट कर जब तक रखें ##7## ना
बधाई मिले और ज़माना पूजता रहे
इस तरह की राहुल रखे ##8## ना
सिएटल
3 जून 2008
=================================
ऐसी रचनाओं को मैं सभारंजनी रचना कहता हूँ - जिनमें हर दूसरी लाईन पंचलाईन होती है। जब ऐसी रचनाएँ सुनाई जाती हैं तो कोशिश यह की जाती है कि पहली लाईन दो तीन बारी दोहराई जाए ताकि श्रोताओं की जिज्ञासा बढ़े कि पंचलाईन में काफ़िया क्या होगा?
चूंकि आप सुनने की बजाए इसे पढ़ रहे हैं - मैं चाहता हूँ कि आप भी सभा के आनंद से वंचित न रहे। इसलिए सारे काफ़ियें छुपा दिये हैं। कल तक इंतज़ार करें और मैं सारे काफ़ियें उजागर कर दूंगा।
तब तक आप खुद अपने दिमागी घोड़े दौड़ाए और अंदाज़ा लगाए कि कौन से शब्द #### की जगह ठीक बैठेगें। आप अपने शब्द मुझे भेज सकते हैं, ई-मेल द्वारा (upadhyaya@yahoo.com) - या फिर यहाँ दे दे अपनी टिप्पणी द्वारा। एक बात ध्यान में रखें कि कुल 8 शब्द हैं। कोई भी शब्द दोहराया नहीं गया है।
=======================================
काफ़िया = दो शब्दों का ऐसा रूप-साम्य जिसमें अंतिम मात्राएँ और वर्ण एक ही होते हैं। जैसे-कोड़ा, घोड़ा और तोड़ा,या गोटी चोटी और रोटी का काफिया मिलता है।
=======================================
Tuesday, June 3, 2008
मेरी कविता और आपके शब्द
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:40 AM
आपका क्या कहना है??
1 पाठक ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Labels: CrowdPleaser, world of poetry
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comments:
नमस्कार राहुल जी
आप की कविता बहुत ही अच्छी है | हमने कोशिश की है आपके कोड को decode करने की | please बतैयेगा की हम कहाँ तक सफल हुये हैं -
मेरी कविता में बसती है बस मेरी भावना
विनती है कि भावना का लगे भाव ना
सब पढ़ते हैं सुनते हैं पर समझते हैं वो
मात्र मात्रा की गलती पर जो खाते ताव ना
मेरा ही लहू हो और मेरी ही कलम
किसी और का कुछ लगे स्याह ना
जो पहले से हैं वही कुरेदें हैं मैंने
नए सिरे से मैंने किए हैं घाव ना
कलम टेढ़ी न हो तो मैं लिख पाता नहीं
सीधी पतवार से तो माझी खेतें नाव ना
धूप से है जीवन और धूप से है विकास
छालों के डर से मुसाफ़िर मांगे छाँव ना
आज़ादी का मतलब मैं समझ पाया नहीं
लीक से हट कर जब तक रखें पाँव ना
बधाई मिले और ज़माना पूजता रहे
इस तरह की राहुल रखे चाव ना
सादर प्रणाम सहित , अर्चना
Post a Comment