मुझ में वफ़ा हरगिज़ न थी
पर मैं ज़फ़ा कर ना सका
काश मुझे मिलती सजा
पर मैं ख़ता कर ना सका
तितली नवेली मिले यही सोच समझ कर
जिम मॉल मंदिर जाता रहा
शादी-ब्याह कर के भी शाम-ओ-सहर
मैं तांक-झांक करता रहा
किसी ने मुझे भाव ना दिया
मैं घपला कर ना सका
मैंने जिसे देखा उसे चाहा था मगर
कोई पास भी फ़टका नहीं
किसी ने न मुझसे कोई तोहफ़ा लिया
न किसी ने मुझको ख़त ही लिखा
किसी हूर पर दिल-ओ-जान को
मैं तो फ़िदा कर ना सका
सिएटल,
25 जून 2008
(आनंद बक्षी से क्षमायाचना सहित)
पर मैं ज़फ़ा कर ना सका
काश मुझे मिलती सजा
पर मैं ख़ता कर ना सका
तितली नवेली मिले यही सोच समझ कर
जिम मॉल मंदिर जाता रहा
शादी-ब्याह कर के भी शाम-ओ-सहर
मैं तांक-झांक करता रहा
किसी ने मुझे भाव ना दिया
मैं घपला कर ना सका
मैंने जिसे देखा उसे चाहा था मगर
कोई पास भी फ़टका नहीं
किसी ने न मुझसे कोई तोहफ़ा लिया
न किसी ने मुझको ख़त ही लिखा
किसी हूर पर दिल-ओ-जान को
मैं तो फ़िदा कर ना सका
सिएटल,
25 जून 2008
(आनंद बक्षी से क्षमायाचना सहित)
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