Wednesday, June 25, 2008

मुझ में वफ़ा हरगिज़ न थी

मुझ में वफ़ा हरगिज़ न थी
पर मैं ज़फ़ा कर ना सका
काश मुझे मिलती सजा
पर मैं ख़ता कर ना सका

तितली नवेली मिले यही सोच समझ कर

जिम मॉल मंदिर जाता रहा
शादी-ब्याह कर के भी शाम-ओ-सहर
मैं तांक-झांक करता रहा
किसी ने मुझे भाव ना दिया
मैं घपला कर ना सका

मैंने जिसे देखा उसे चाहा था मगर
कोई पास भी फ़टका नहीं
किसी ने न मुझसे कोई तोहफ़ा लिया
न किसी ने मुझको ख़त ही लिखा
किसी हूर पर दिल-ओ-जान को
मैं तो फ़िदा कर ना सका

सिएटल,
25 जून 2008
(आनंद बक्षी से क्षमायाचना सहित)

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