जो राज करता है उसे राजा कहते हैं
जो राज करती है उसे रानी कहते हैं
जो नाराज करती है उसे नारी कहते हैं
जो तुरंत समझ में आ जाए उसे चुटकला कहते हैं
जो कल समझ में आएगी उसे कला कहते हैं
जो कभी समझ न आए उसे कविता कहते हैं
गज़ल के पहले शेर को मतला कहते हैं
गज़ल के आखरी शेर को मक़ता कहते हैं
जो गज़ेल को खा जाता है उसे शेर कहते हैं
जो वर्ष में एक बार होती है उसे वार्षिक कहते हैं
जो महीने में एक बार होती है उसे मासिक कहते हैं
जो सिएटल में बार बार होती है उसे वर्षा कहते है
जो देस में रहता है उसे देसी कहते हैं
जो विदेश में रहता है उसे विदेशी कहते हैं
जो ख़ुद में रहता है उसे ख़ुदा कहते हैं
जो भीख मांगता है उसे भिखारी कहते हैं
जो पूजा करता है उसे पुजारी कहते हैं
जो बीमा करता है उसे बीमारी कहते हैं
जो रंग जाता है उसे रंगा कहते हैं
जो टंग जाता है उसे टंगा कहते हैं
जो हमें दंग कर दे उसे दंगा कहते हैं
जिसके पंख होते हैं उसे पंखा कहते हैं
जिसमें गंद होती है उसे गंदा कहते हैं
जिसे चंद लोग देते हैं उसे चंदा कहते हैं
जो भाग जाता है उसे भागा कहते हैं
जो जाग जाता है उसे जागा कहते हैं
जो सब की दाद पाता है उसे दादा कहते हैं
जो खुल जाता है उसे खुला कहते हैं
जो बंध जाता है उसे बंधा कहते हैं
जिसका दिमाग बंद हो जाता है उसे बंदा कहते हैं
फल पेड़ पर फलते हैं
मुर्दें चिता पर जलते हैं
जो चिंता से परे हैं उनसे सब जलते हैं
सिएटल,
10 जून 2008
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गज़ेल = gazelle
Tuesday, June 10, 2008
पंचलाईन
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:54 PM
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1 comments:
It was ok, you can do better though. Something more meaningful next time?
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