मेरी कविता में बसती है बस मेरी भावना
विनती है कि भावना का लगे भाव ना
सब पढ़ते हैं सुनते हैं पर समझते हैं वो
मात्र मात्रा की गलती पर जो खाते ताव ना
मेरा ही लहू हो और मेरी ही कलम
किसी और का कुछ लगे दाँव ना
जो पहले से हैं वही कुरेदें हैं मैंने
नए सिरे से मैंने किये घाव ना
कलम टेढ़ी न हो तो मैं लिख पाता नहीं
सीधी पतवार से तो माझी खेतें नाव ना
धूप से है जीवन और धूप से है विकास
छालों के डर से मुसाफ़िर मांगे छाँव ना
आज़ादी का मतलब मैं समझ पाया नहीं
लीक से हट कर जब तक रखें पाँव ना
बधाई मिले और ज़माना पूजता रहे
इस तरह की राहुल रखे चाव ना
सिएटल
3 जून 2008
Wednesday, June 4, 2008
मेरी कविता
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:13 PM
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Labels: bio, Why do I write?, world of poetry
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