Tuesday, September 15, 2009

गुल खिलाना है बाकी



अभी लाश नहीं हूँ 
अभिलाषा है बाकी 
चाहा है तुमको 
तुम्हें पाना है बाकी 

दिल में मेरे तुम 
कब से बसे हो 
आँखों से आँखें 
मिलाना है बाकी 

आते ही रहते हो 
ख़्वाबों में हर दिन 
रातों में तुम्हारा  
आना है बाकी 

सबसे हसीं तुम 
जग में सनम हो 
हाथों से तुम्हें  
सजाना है बाकी 

 बागी नहीं 
बागबां है राहुल 
बागों में फिर से 
गुल खिलाना है बाकी 

राहुल उपाध्याय | 15 सितम्बर 2009 (अमरीका आने की 23 वीं वर्षगाँठ) | सिएटल 

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1 comments:

रंजना said...

वाह!! प्रेमपूर्ण भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति....