इक बात समझनी है
हमें जान बचानी है
ज़िन्दगी और कुछ दिन
घर में ही बीतानी है
हाथ जमकर धोना है
धोते ही जाना है
धोने का मतलब तो
साबुन भी लगाना है
कुछ पल भर धोने से
इक उम्र चुरानी है
कोरोना को जाना है
जाकर मिट जाना है
बादल है ये कुछ पल का
छा कर ढल जाना है
परछाइयाँ रह जातीं
रह जाती निशानी है
हम फूल हैं बगिया के
जो फूल महकते हैं
हम बात समझते हैं
हाँ ख़ूब समझते हैं
'गर बात है लॉकडाउन की
वो बात भी मानी है
राहुल उपाध्याय । 15 अप्रैल 2020 । सिएटल
मूल शब्द: संतोष आनन्द
मूल संगीत: लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल
शब्दों में फेर-बदल: राहुल
बाक़ी सब: उमेश
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