Thursday, April 16, 2020

इक बात समझनी है

इक बात समझनी है
हमें जान बचानी है
ज़िन्दगी और कुछ दिन
घर में ही बीतानी है

हाथ जमकर धोना है
धोते ही जाना है
धोने का मतलब तो
साबुन भी लगाना है
कुछ पल भर धोने से
इक उम्र चुरानी है

कोरोना को जाना है
जाकर मिट जाना है
बादल है ये कुछ पल का
छा कर ढल जाना है
परछाइयाँ रह जातीं
रह जाती निशानी है

हम फूल हैं बगिया के
जो फूल महकते हैं
हम बात समझते हैं
हाँ ख़ूब समझते हैं
'गर बात है लॉकडाउन की
वो बात भी मानी है 

राहुल उपाध्याय । 15 अप्रैल 2020 । सिएटल

मूल शब्द: संतोष आनन्द 
मूल संगीत: लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल 
शब्दों में फेर-बदल: राहुल
बाक़ी सब: उमेश


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