मेरी चौथी कक्षा तक पढ़ीं माँ
आज अमेरिका की ग्रीनकार्ड धारक हैं
यह सब संतोषी माता के व्रत का प्रताप है
आज मेरा गर्लफ़्रेंड से ब्रेकअप हो गया
कल शनिवार को गाड़ी में तेल डलवाया था
यह उसका परिणाम है
यानि सुखी जीवन के लिए
शुक्रवार को खटाई खाना बन्द करो
शनि को पेट्रोल की दुकान
गुरू को नाई की
जो इन नियमों का उल्लंघन करेंगे
वे भुगतेंगे
कोरोना उन्हें ढूँढ निकालेगा
वे बचकर नहीं जा सकते
वह अदृश्य है
सब को परख रहा है
कर्मों के पलड़े में तौल रहा है
और तुम मूर्खों की तरह टेस्ट पर टेस्ट
किए जा रहे हो
वे
जिन्होंने गाय पाली हैं
जिन्होंने देसी घी खाया है
ज्योतिर्लिंग के सामने शीश नवाया है
वे सुरक्षित हैं
हम ज्ञान-विज्ञान-अज्ञान के उस छोर पर हैं
जहाँ हर बात ग़ौर करने लायक़ है
न कोई ग़लत है
न कोई सही है
सब का सब गड्डमड्ड है
अभी भी नासे रोग हरे सब पीरा के नारे लगते हैं
अभी भी निरर्थक दीप जलते हैं
अभी भी वही सब होता है
जो हज़ारों साल पहले होता था
कहते हैं
हवा साफ़ है
मृत्यु दर गिर गई है
परिवार ख़ुश है
लोग दान पुण्य कर रहे हैं
सतयुग आ गया है
यह कैसा सतयुग?
जहाँ ग़रीब दान पर आश्रित है?
जहाँ महामारी का आतंक है?
जहाँ हर घर एक जैल है?
क्यों नहीं खोल देते
मन्दिर-मस्जिद-गिरजे
क्या पता
दवा नहीं तो दुआ ही काम आ जाए
क्या सारी दुनिया
नास्तिक हो गई?
क्या किसी ने भी
एक भी नेता ऐसा नहीं चुना
जिसे धर्म संस्थानों पर विश्वास हो?
राहुल उपाध्याय । 19 अप्रैल 2020 । सिएटल
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