तेल का दाम
शून्य से कम?
कई लोग
इसे समझने में
असमर्थ हैं
लेकिन हिन्दी का कवि
इस अर्थव्यवस्था से
भलीभाँति परिचित है
अपने ही पैसों से किताब छपवाना
अपने ही ख़र्चे पर लोकार्पण
एक नहीं
कई बार करवाना
चाय पिलाना
समोसा खिलाना
फिर भेंट में हस्ताक्षरित प्रति देना
जो कि पढ़ी तो कभी जाती नहीं है
लेकिन नज़र भी कभी नहीं आती है
यह सब करना
उसे अत्यंत सुख देता है
मानो कविता छपी नहीं
तो वह सड़ जाएगी
तेल वालों की भी वही दुविधा है
तेल निकलता न रहा
तो मशीन में जंग लग जाएगी
पूरा धंधा चौपट हो जाएगा
सामने वाले के काम न आए
तो वह क्यूँ ले?
बस ऐसे ही
लेने के देने पड़ जाते हैं
कविता लिख दी
और भेजे जा रहे हैं
एक ढीठ की तरह
चाहे सामने वाला
कितना ही मना क्यों न करे
राहुल उपाध्याय । 22 अप्रैल 2020 । सिएटल
1 comments:
bahut khub
bhavnao mein chipi vedna
Post a Comment