Sunday, April 5, 2020

काल का ग्रास

कभी किसी रविवार को
यदि इतवारी पहेली का हल न भेजूँ
तो समझ लेना मैं काल का ग्रास बन गया हूँ

ऐसा नहीं कि 
मैंने एहतियात नहीं बरती
माँ के साथ मन्दिर गया
होली मनाई
दूध-मिश्री-सब्ज़ी लेने बाज़ार गया
नवरात्रि के लिए नारियल-फूल लाया
लहलहाते जौ बहते पानी में छोड़े
कॉस्टको से गाड़ी में तेल भरा
और कोरोना मुझे डस गया

या कि
मैंने ताली-थाली नहीं बजाई
या निर्धारित समय पर दीप नहीं जलाए
और नौ मिनट की अवधि माप न सका

मैंने डायबीटीज़ पर विजय पा ली है
रोज़ कम से कम पाँच मील चलता हूँ
सिर्फ सब्ज़ी खाता हूँ
और सूर्यास्त के बाद कुछ भी नहीं 

फिर भी ऐसा नहीं कि
सारे रविवार मेरे हों
न बुद्ध के हुए, न राम के, न गाँधी के

एक दिन तो ऐसा आएगा ही
जब मैं हल नहीं भेज पाऊँगा 
तब समझ लेना मैं काल का ग्रास बन गया हूँ

लेकिन मेरी आत्मा की शांति प्रार्थना मत करना
वह तो स्थितप्रज्ञ है
वह क्यूँ अशांत होने लगी
न ही झूठी प्रशंसा करना
या कोई अच्छा काम ढूँढने की कोशिश करना

जो तुम आज, अभी मेरे बारे में सोच रहे हो
वही सच है
उसे नकारना मत
मुझे वही राहुल ज़िन्दा रखना है
कोई नक़ली राहुल नहीं 

मैं जैसा हूँ
मुझे वैसा ही रहने देना
उस पर फ़िल्टर नहीं लगाना
कुछ और ही नहीं बना देना

राहुल उपाध्याय । 6 अप्रैल 2020 । सिएटल

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4 comments:

'एकलव्य' said...

आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु नामित की गयी है। )

'बुधवार' ०८ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"

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टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।


आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

Sudha Devrani said...

बहुत सुन्दर, लाजवाब सृजन
वाह!!!!

Rohitas Ghorela said...

बहुत ही उम्दा रचना है राहुल जी.
काल के ग्रास बनने के बाद आदमी की असलियत जमाने के हिसाब से चलती है...इस बात को आज के दौर से मिलाकर आपने बहुत ही बढिया ढंग से पेश किया है.
आपको पहली बार पढ़ा है राहुल जी बहुत ही अच्छा लगा.
आपका मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत है. नई रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए