निशाँ नहीं है, निशा मगर है
सदा रही है, सदा रहेगी
जो राज़ सबके छुपा रही है
सदा रही है, सदा रहेगी
वो आके फिर से, जाएगी फिर से
गाएगी फिर से, सुनाएगी फिर से
वो राग, वो धुन छेड़ेगी फिर से
है कैसी उलझन ये मेरी धड़कन
ठुमक-ठुमक कर चले हैं क्षण-क्षण
न जाने किस ओर जा रही है
कभी सफ़र में जो गिर पड़े हम
गिर के फिर से हुए खड़े हम
है रूह सलामत न जाने कब से
राहुल उपाध्याय । 31 मार्च 2021 । सिएटल
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