जहाँ मैं जाता हूँ वहीं चले आते हो
चोरी-चोरी मेरे तन में समाते हो
ये तो बताओ कि तुम कैसे रोग हो
सर से पाँव तक अगन की ये बात है
दिन की रात की थकन की ये बात है
ये तो बताओ कि तुम कैसे रोग हो
ओ, मैं तो मास्क लगाऊँगा
करनी तुम्हारी से बच जाऊँगा
खैर जो चाहो चले जाओ मेरे दर से
छोड़ो ये आना-जाना मेरे नगर से
ये तो बताओ कि तुम कैसे रोग हो
ओ, तूने क्यों दु:ख दिया है
रोग दे कर चैन ले लिया है
किसी बड़े ज्ञानी-ध्यानी को बुलाओ
अभी-अभी यहीं फ़ैसला कराओ
उनसे पूछेंगे हम तुम कैसे रोग हो
ओ, अपने अब हैं बेगाने
कहना हमारा अब कौन माने
ये तो बताओ कि तुम कैसे रोग हो
(शैलेंद्र से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 8 अप्रैल 2021 । सिएटल
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