हमारे अगले 33 साल के
अलिखित अनुबंधों की वजह से
मैं स्वस्थ रहूँगा
जीवित रहूँगा
हर संकट से उबर जाऊँगा
अनुबंध हैं
तो जीवन है
पिछले 13 सालों में
ऐसे ही कई अलिखित अनुबंधों ने
मुझे ताक़त दी थी
उम्मीद की राह दिखाई थी
लेकिन अफ़सोस
कुछ तीन महीने
तो कुछ तीन साल में ही
ख़ारिज हो गएँ
शायद ये भी
रद्द हो जाएँ
कहते हैं
हमारे शरीर में
रोज़ लाखों कोशिकाएँ
बनती-बिगड़ती रहती हैं
शायद
बनना-बिगड़ना ही
जीवन है
राहुल उपाध्याय । 16 अप्रैल 2021 । सिएटल
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