डर के दुनिया के सारे
फँसे थे घर में बेचारे
लगी जब उन को वैक्सीन
हो गएँ वे जवाँ रे
प्यार-मोहब्बत के वादे
जो रहे आधे-आधे
होंगे अब जा के पूरे
मिल के हँसते-हँसाते
क्या सही आदमी है
आफ़त जब भी पड़ी है
मानी हार कभी ना
लड़ाई जम के लड़ी है
दुख कहीं आज भी है
भूख और प्यास भी है
एक-एक कर दु:ख सारे
दूर होंगे आस भी है
राहुल उपाध्याय । 5 अप्रैल 2021 । सिएटल
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