वैक्सीन बनाने वाले
क्या तेरे मन में समाई
काहे ना रोज़ी बनाई
तूने काहे ना रोज़ी बनाई
फ़्री में वैक्सीन, महँगी है रोटी
किसने रची ये चाल ऐसी खोटी
भूखे मरे कोई, कोई न पूछे
रोगी बढ़े, इनके पसीने हैं छुटे
अपनी भलाई देखी, वैक्सीन की बात बढ़ाई
धरती ये कैसी रब ने बनाई
फ़्री में धूप और फ़्री में सिंचाई
जितने चाहे उतने फल कोई खाए
उसने ने न कभी कोई दाम लगाए
अपने आप हमने, बगिया में आग लगाई
ऐसा नहीं हम मेहनत न करते
कर के भी मेहनत घर नहीं चलते
पलते हैं बस झूठे ख़्वाब हैं पलते
दिन के उजाले में वो आँखों में जलते
अंधेरा होने पर भी, चलती जाए रूलाई
राहुल उपाध्याय । 6 अप्रैल 2021 । सिएटल
0 comments:
Post a Comment