तुम जो बाहों में आओ
मैं बाजुओं में कुछ दम भी लाऊँ
तुम जो सुनो
मैं एक ग़ज़ल भी गाऊँ
सुर, सुख़न, सुख
सब तुमसे वाबस्ता हैं
तुम हाथ बढ़ा कर तो देखो
मैं तुम्हें पूरी कायनात दिखाऊँ
आयफल-ताज खुले भी होते तो
उनमें वो बात कहाँ
जो
तुम्हारे बालों की महक में है
तुम्हारे गालों की दहक में है
आवाज़ की खनक में है
दांतों की चमक में है
हाथों के स्पर्श में है
ज़ुबां के स्वाद में है
आँखों के ख़्वाब में है
अधरों की प्यास में है
अनछुई आग में है
कायनात का अहसास
खुदाई का आभास
जन्नत का भाव
सब तुम में ही तो है
तुम हाथ बढ़ा कर तो देखो
मैं तुम्हें पूरी कायनात दिखाऊँ
राहुल उपाध्याय । 23 अप्रैल 2021 । सिएटल
सुख़न = शायरी
वाबस्ता = जुड़े हुए
कायनात = सृष्टि
आयफल = आयफल टॉवर
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