लाज की सीमाएँ तोड़ी
डर भी घर का छोड़ दिया
इक बलवान सी लड़की ने
मुझसे नाता जोड़ लिया
उसने मुझको अपना समझा
उड़ गई नींद दीवाने की
आँखों से जब आँखें मिल गईं
मिल गई राह ख़ज़ाने की
उस संग जीवन ऐसा जैसे
ख़ुशियाँ हो मयखाने की
अब तक जो मैं पीता था
सब का सब ही छोड़ दिया
अब न कोई प्यास बची है
ना है भूख ज़माने की
साँसों में है प्यार की रंगत
लब पे गीत सुनाने की
प्यार का मतलब जो न समझें
तलब उन्हें समझाने की
घर-घर जा के मैं ये बोलूँ
मैंने प्यार को ओढ़ लिया
राहुल उपाध्याय । 15 जुलाई 2021 । सिएटल
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