पूछो ना कैसे मैंने गीत बनाए
इक गीत ऐसा, इक गीत वैसा
सब गीतों ने जान ली हाए
कभी-कभी चंचल, कभी अति धीरा
कभी-कभी आनन्द, बहे कभी पीरा
लिखते-गाते प्राण गँवाए
कभी-कभी सोचूँ, लिख डाली गीता
फिर तभी सोचूँ, मैंने कुछ नहीं लिखा
जग के मन को रास जो आए
राहुल उपाध्याय । 9 जुलाई 2021 । सिएटल
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