हमारी राह मुड़ चुकी
अब किसे तुम मनाओगे
हमारी आग बुझ चुकी
अब किसे तुम मनाओगे
सहारे सब के सब
जगह-जगह से मिल गए
नहीं थे जो ख़्वाब में
वो भी आज मिल गए
किसी से आँख लड़ चुकी
अब किसे तुम मनाओगे
पनप रहे हैं हम यहाँ
किसी के प्यार में
फ़िज़ा का रंग छा रहा है
मौसम-ए-बहार में
हवा भी रुख बदल चुकी
अब किसे तुम मनाओगे
राहुल उपाध्याय । 6 जुलाई 2021 । सिएटल
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