हर बार की मंज़िल है ये
अवतार जो नर है
हर बार उसे आना है
और जाना सुधर है
हाथों ही से हैं
उसने दीप जलाए
अपनी ही मेहनत से
पिरामिड हैं बनाए
अपने ही हुनर की हुई
कब ये ख़बर है
जानवर है मगर
जानवर से जुदा है
खुद ही करे और
कहे रब ने किया है
अपने ही करम से
जाता वो उबर है
राहुल उपाध्याय । 1 जुलाई 2021 । सिएटल
1 comments:
बहुत बढ़िया ।
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