Thursday, July 8, 2021

मैं कैसे कह दूँ कि मैं तुम्हें जानता नहीं

मैं कैसे कह दूँ 

कि मैं तुम्हें जानता नहीं 

जबकि अच्छी तरह से वाक़िफ़ हूँ 

तुम्हारे रोम-रोम से


सर से पाँव तलक के

हर 

तिल से

दाग से

आग से

आह से


बा-ख़बर हूँ 

हर गिरते-उठते कम्पन से

अंगड़ाई से

तन में उभरते ज्वार से

आँखों में उतरते प्यार से

सुलाती हथेली की थपकार से

जगाती उँगलियों के दुलार से


मैं कैसे कह दूँ 

कि मैं तुम्हें जानता नहीं 

जबकि मैं जुड़ा हूँ 

तुम्हारे हर श्रंगार से

पाजेब की झंकार से

गले में लटके हार से

साँसों के तार से


मैं कैसे कह दूँ 

कि मैं तुम्हें जानता नहीं 

तुम मेरी नहीं 

तो ग़ैर भी नहीं 

दोस्ती नहीं 

तो बैर भी नहीं

न दूर हो तुम

न पास हो तुम

बहुत-बहुत-बहुत 

ख़ास हो तुम


मैं कैसे कह दूँ 

कि मैं तुम्हें जानता नहीं 


राहुल उपाध्याय । 8 जुलाई 2021 । सिएटल 




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