कभी-कभी दुआओं का
जवाब आता है
और कुछ इस तरह कि
बेहिसाब आता है
कहाँ तो मयस्सर नहीं था
एक बूँद भी पानी
और अब आया तो ऐसे
जैसे सैलाब आता है
(मयस्सर = उपलब्ध)
(सैलाब = बाढ़)
कोई वीडियो बनाता है
कोई कविता है लिखता
किसी को न किसी को
बचाने का ख़्वाब आता है
इस लम्बी ज़िन्दगी में भी
आते हैं कुछ ऐसे क्षण
जब चल के ख़ुद बाँहों में
महका गुलाब आता है
बहुत आसां है जीतना जंग
हज़ारों अहबाब के साथ
जिगर फ़ौलाद का हो तो
ओलम्पिक में ख़िताब आता है
(अहबाब = हबीब (दोस्त) का बहुवचन)
बुराईयों की फ़ेहरिस्त
वैसे तो है बहुत लम्बी
पर बीड़ी-सिगरेट का ही नाम
होंठों पे जनाब आता है
(फ़ेहरिस्त = लिस्ट, सूची)
ढूँढते रहते हैं रात-दिन
जो फुरसत के रात-दिन
हो जाते हैं पस्त जब
पर्चा रंग-ए-गुलाब आता है
(पर्चा रंग-ए-गुलाब = नौकरी से बर्ख़ास्तगी का आदेश )
चश्मा बदल-बदल कर
कई बार देखा
हर बार नज़रों से दूर
नज़र सराब आता है
(सराब = मरीचिका, मृगतृष्णा)
जा के विदेश जाके पूत
डालते हो डेरा
वैसे मुल्क में कहाँ
आफ़ताब आता है
(जाके = जिसके)
(आफ़ताब = सूरज)
कुकर पे सीटी
न जब तक लगी हो
दाल में भी कहाँ
इंकलाब आता है
पराए भी अपनों की तरह
पेश आते हैं 'राहुल'
वक़्त कभी-कभी ऐसा भी
खराब आता है
राहुल उपाध्याय । 31 जुलाई 2021 । सिएटल
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