जो चला गया उसे भूल जा
जो है साथ में उसे प्यार कर
वो न प्यार था, कुछ और था
जो था रस्म-ओ-रहम की खुराक पर
जो न हाथ दे कभी हाथ में
है वो हमसफ़र नहीं हमसफ़र
जहाँ रात भी न गुज़र सके
है न आसरा ना वो किसी का घर
अब और कहाँ तक गाऊँ मैं
अब ख़त्म हुआ मेरा पहर
राहुल उपाध्याय । 17 नवम्बर 2021 । सिएटल
2 comments:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१९-११-२०२१) को
'प्रेम-प्रवण '(चर्चा अंक-४२५३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर।
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