Friday, November 19, 2021

धूप-छाँव

ऐसा नहीं कि

जब जो चाहा चुन लिया

कभी धूप तो कभी छाँव में

सर धुन लिया


न धूप है कहीं 

न छाँव है कहीं 

ये ज़िन्दगी है तब तक

जब तक अलाव है कहीं 


छत डलने ही से

छाँव नहीं होती

सुबह होने ही से

धूप नहीं होती


जब अपने ही हाथों से

आँसू पोंछता है कोई 

पलट के जानेवाले को 

न जब रोकता है कोई 


जीवन सम्भावनाओं से भर जाता है 

जीवन सम्भावना-रिक्त हो जाता है 


राहुल उपाध्याय । 19 नवम्बर 2021 । सिएटल 




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