जो कभी मील के पत्थर साबित हुए थे
आज विलुप्त हैं
गुगल मैप्स के ज़माने में
न मील हैं न पत्थर
सिर्फ़ एक नीली लकीर
जो चलती है नाक की सीध में
न पूरब है
न पश्चिम
न उत्तर है
न दक्षिण
सब नाक की सीध में
न मंदिर है
न मस्जिद
न पोखर
न स्कूल
न घंटाघर
न अस्पताल
इनकी भी कभी कोई क़द-काठी रही होगी
लेकिन नहीं
अब सब सपाट है
टू डाइमेन्शन्स में
हल्के रंगों में
अपनी पहचान खोते हुए
जो कभी मील के पत्थर साबित हुए थे
आज विलुप्त हैं
राहुल उपाध्याय । 19 नवम्बर 2021 । सिएटल
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