मेरी आँखों में कोई भी बुरा नहीं
बुरा है कौन और क्या मुझे तो कुछ पता नहीं
दिल दिया तोड़ किसी ने, तो किसी ने जान ही ले ली
जिसे समझा था मैं अपना उसी ने पहचान भी ले ली
इससे ज़्यादा तो मेरे साथ कुछ हुआ नहीं
चल रहा हूँ कि चलना ही मेरी रग-रग समाया है
लिख रहा हूँ कि लिखना ही मुझे हर हाल भाया है
वरना मेरे दामन में कुछ और अब बचा नहीं
हर तरफ़ है जहां भर की जवां दिल की सजी महफिल
मैं ही हूँ ख़फ़ा सबसे, नहीं मेरी ये नहीं मंज़िल
विनती है आपसे मेरी, करे मुझपे दया नहीं
राहुल उपाध्याय । 25 नवम्बर 2021 । सिएटल
1 comments:
उम्दा प्रस्तुति।
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