हर ग़लती माँगती है
एक उत्तर हो बड़ा
हर ग़लती ढूँढती है
एक लम्हा जो न था
चाँद-सितारों का मेला हो
या कोई तन्हा अकेला हो
हर क़हर
हर पहर
हर डगर
हर कोई चाहता है
एक साथी हो यहाँ
आग बुझाने का सोचा है
हाथ हटाने का सोचा है
हर समर
हर शीत
हर रूत
दिल बदले दास्ताँ
दिल बदले रास्ता
अपना नहीं सबका रोना है
होता वही जो कि होना है
हर कवि
हर कहीं
हर ज़मीं
दर्द करता यही बयां
दर्द रहता यही सदा
राहुल उपाध्याय । 23 नवम्बर 2021 । सिएटल
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