Tuesday, November 23, 2021

हर ग़लती माँगती है

हर ग़लती माँगती है 

एक उत्तर हो बड़ा

हर ग़लती ढूँढती है

एक लम्हा जो न था


चाँद-सितारों का मेला हो

या कोई तन्हा अकेला हो

हर क़हर 

हर पहर

हर डगर 

हर कोई चाहता है 

एक साथी हो यहाँ 


आग बुझाने का सोचा है

हाथ हटाने का सोचा है 

हर समर

हर शीत 

हर रूत 

दिल बदले दास्ताँ 

दिल बदले रास्ता 


अपना नहीं सबका रोना है 

होता वही जो कि होना है

हर कवि

हर कहीं 

हर ज़मीं 

दर्द करता यही बयां 

दर्द रहता यही सदा


राहुल उपाध्याय । 23 नवम्बर 2021 । सिएटल 




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