तुम्हीं से मोहब्बत, तुम्हीं से शिकवा
ये आशिक़ भी कैसा घनचक्कर होता
लड़ें भी हम, मनाएँ भी हम
बात-बात पे ये जमकर रोता
सब अलग और वो दो सबसे अलग
उन्हीं की बेटी से क्यों प्यार कसकर होता
हम भी चाहते हैं कि भग जाएँ कहीं अब
दिन-रात का होना है अब दुष्कर होता
ज़िन्दगी-जीवन जंजाल सभी है
इनका सामना क्या कभी डटकर होता
राहुल उपाध्याय । 21 नवम्बर 2021 । सिएटल
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:) :) :)
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