Thursday, November 18, 2021

आज बारिश में

आज बारिश में 

कार से निकलते वक्त 

मम्मी याद आ गईं


कैसे मैं 

ट्रंक से वॉकर निकाल कर

उन्हें 

एक काग़ज़ की गुड़िया की तरह

बूँदों से बचाता हुआ 

छतरी लेकर घर में लेकर आता था

कि कहीं वे गल न जाए 


अब ट्रंक

साफ़ है 

सपाट है

ख़ाली है

मैं उधर

झांकता भी नहीं 

सब्ज़ी-भाजी जो भी है 

पड़ोस की सीट पर ही रख लेता हूँ 


कभी सोचता हूँ 

वे यहीं कहीं हैं

मुझे देख रहीं हैं 

ख़ुश होते हुए

दुखी होते हुए


और कभी सोचता हूँ कि

किसी प्रोग्रामिंग लेन्ग्वेज के

वेरिएबल की तरह

एक सबरूटीन का हिस्सा थी

काम किया

वेल्यू घटाई-बढ़ाई 

और निकल गईं 


कोई और कॉल करेगा

तो चली जाएँगी

नवजीवन 

नवरूप में


राहुल उपाध्याय । 18 नवम्बर 2021 । सिएटल 





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