पहले
फ़िल्मों के
और
कॉमिक बुक्स के
खलनायक
दाढ़ी-मूँछ रखते थे
राहुल उपाध्याय । 27 फ़रवरी 2023 । सिएटल
पहले
फ़िल्मों के
और
कॉमिक बुक्स के
खलनायक
दाढ़ी-मूँछ रखते थे
राहुल उपाध्याय । 27 फ़रवरी 2023 । सिएटल
दो हज़ार उन्नीस में
एक जानलेवा बीमारी ने
जन्म लिया था
जिसकी खबर हमें
दो हज़ार बीस में लगी थी
जब लगी तब भी हम इसके
विनाशकारी प्रभाव को
मानने से मुकर रहे थे
रोकथाम के तरीक़ों से
मुँह मोड़ रहे थे
उन्हें अपनाने में हमें
अपना ही नुक़सान दिख रहा था
कोई भलाई नहीं दिख रही थी
भला ऐसा भी कहीं होता है?
मुँह पर पट्टी बांध लो?
किसी से मिलने न जाओ?
गले न लगाओ?
हाथ न मिलाओ?
शादी में न जाओ?
दाह-संस्कार में न शामिल हो?
रोने को कंधा न दो?
अस्पताल मिलने न जाओ?
हमारी मानवीयता की जड़ें ही ख़त्म नहीं हो जाएँगी?
दो हज़ार उन्नीस में ही
एक और भयानक बीमारी ने जन्म लिया था
भारत में
जिसकी खबर आज तक
कई लोगों तक नहीं पहुँची है
पहुँची भी है
तो वे इसके विनाशकारी प्रभाव को
मानने से मुकर रहे हैं
रोकथाम के तरीक़ों से
मुँह मोड़ रहे हैं
उन्हें अपनाने में उन्हें
अपना ही नुक़सान दिख रहा है
कोई भलाई नहीं दिख रही है
भला ऐसा भी कहीं होता है?
जिन चीजों पर हम विश्वास कर रहे हैं
उन्हें झूठ कैसे मान लें?
हम ख़ुद ही झूठे साबित नहीं हो जाएँगे?
राहुल उपाध्याय । 25 फ़रवरी 2023 । सिएटल
मुझमें कई सारी कमियाँ हैं
मैं इंसान को इंसान ही समझता हूँ
मुझे वो किसी का पिता, भाई या बेटा नहीं दिखता
न किसी संस्था का संस्थापक, अध्यक्ष या ख़ज़ांची
या ड्राइवर या दर्ज़ी या ख़ानसामा
कुछ भी नहीं
यही हाल सबके लिए है
चाहे पुजारी हो, माँ हो, बेटी हो, बहन हो
हिंदू हो, मुसलमान हो, इंसान हो
सब एक जैसे दिखते हैं
बस काँन्टेक्स में जोड़ने में दिक्कत होती है
एक ही नाम के एक से ज़्यादा प्राणी हो तो
क्या किया जाए?
अमुक के पति, अमुक की पत्नी, अमुक की बहन?
माइक्रोसॉफ़्ट का सहकर्मी?
सण्डे वॉक ग्रुप का साथी?
प्लेन में मिला रमेश?
जगजीत सिंह का फ़ैन नवीन?
उसका क्या करूँ जो किसी का ड्राइवर था?
अब तक उसके साथ ड्राइवर लिखने की
हिम्मत नहीं जुटा पाया हूँ
राहुल उपाध्याय । 25 फ़रवरी 2023 । सिएटल
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:32 AM
आपका क्या कहना है??
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जबसे तुमने फ़ोन करना बन्द कर दिया है
मैंने बर्तन धोने बन्द कर दिए हैं
कपड़े फ़ोल्ड करने का भी मन नहीं करता है
सारे बेकार के काम बेकार लगते हैं
कई दिनों से हम स्टेटस-स्टेटस खेल रहे हैं
कभी प्रेम-प्यार को परिभाषित करते हैं
कभी झूठ-सच का फ़र्क़ बतलाते हैं
एक दूसरे की डीपी ताकते हैं
उनमें निहित अर्थ की क़यास लगाते हैं
न तुम फ़ोन करती हो
न मैं करता हूँ
कभी सोचता हूँ नफ़रत ही कर लूँ
हर क़यास से छुट्टी पा लूँ
तुम कहाँ गई और कहाँ नहीं
ऐसे सवालात को आग लगा दूँ
तुम मेरी हो, तुम मेरी नहीं हो
इस पेंडुलम पे स्टॉप लगा दूँ
राहुल उपाध्याय । 24 फ़रवरी 2023 । सिएटल
डरते-डरते व्हाट्सएप करना अच्छा लगता है
हैं इस युग के हीर-रांझा, ऐसा लगता है
कितने नग़मे, कितने गीत लिखे हैं फिर भी
जो कहना है कहा ही नहीं, बेजा लगता है
आते-जाते मौसम भी तो इतने हैं हरजाई
काम किया, चले गए, धंधा लगता है
सपने भी अपने हैं रात भर के ही साथी
कोई देख न ले उनको डर सा लगता है
कौन आया, कौन गया, क्यूँ ये सोचूँ मैं
रूह को क्या, ख़ाक ही को कंधा लगता है
तेरा-मेरा मिलना ऐसा जैसे आँगन में
खिल उठे कोई पीपल, वैसा लगता है
राहुल उपाध्याय । 27 जुलाई 2021 । सिएटल
शादी आजकल है उल्लास का समय
पार्टी-शार्टी-नाचने का समय
कौन रोता है, कौन गाता है
बाबुल की दुआएँ लेती जा
बाबुल की दुआएँ लेती जा
जो छुप-छुप के होता था कभी-कभी
वह स्टेज पे होता है खुले आम अभी
दुल्हन भी मटकती रहती है
दुल्हे के गले वो लगती है
संगीत-मेहंदी हैं सब कुछ
फेरो की ज़रूरत कहाँ पड़ती है
प्री-वेडिंग भी अब शूट होता है
पर्दे पे जो चलता रहता है
मुँह दिखाई की रस्म अब दफ़ा हुई
लंदन वाले ठुमके चलते हैं
कौन रोता है, कौन गाता है
बाबुल की दुआएँ लेती जा
बाबुल की दुआएँ लेती जा
अब कौन कहेगा कि भार है ये
शादी-ब्याह अब त्योहार है ये
उधार लेने वाले ये दिखते नहीं
पाई-पाई जोड़ने वाले हैं नहीं
नोट बरसते हैं सब पर
दावत देते हैं बढ़-चढ़ कर
वो लहंगा ही क्या जो न महँगा हो
वह डांस ही क्या जो न भंगड़ा हो
हाय ओ रब्बा, हाय ओ रब्बा के शोर में
अब कौन रोता है, कौन गाता है
बाबुल की दुआएँ लेती जा
बाबुल की दुआएँ लेती जा
राहुल उपाध्याय । 22 फ़रवरी 2023 । सिएटल
दु:ख बिन जीऊँ यहाँ
के दुनिया में आ के
दु:ख ना फिर हुआ कभी
ख़ुद को जान के
पास है मेरे अब सब कुछ
नग़मे प्यार भरे
गली-गली क्यों मैं ढूँढूँ
ख़ुशियाँ साथ पलें
मैं हूँ जहाँ, वहाँ सब कुछ
साथ मेरे
मेरे प्राण रे
चले गए जो भी सहारे
उनका शोक नहीं
जितना था साथ हमारा
उतना साथ सही
बचे हैं जितने भी दिन अब
जीऊँगा नहीं
भर के आह मैं
राहुल उपाध्याय । 4 सितम्बर 2021 । सिएटल
इतवारी पहेली:
ऐ आँसू थम जरा, तू ## ##
क्या हुआ जो भूल गई ### #
इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर।
जैसे कि:
हे हनुमान, राम, जानकी
रक्षा करो मेरी जान की
ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं।
Https://tinyurl.com/RahulPaheliya
आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं।
सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 26 फ़रवरी 2023 को - उत्तर बता दूँगा।
राहुल उपाध्याय । 19 फ़रवरी 2023 । सिएटल
Posted by Rahul Upadhyaya at 9:41 AM
आपका क्या कहना है??
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प्यार ही ताक़त है
प्यार ही है बाधा
राधा ही राहत है
राधा ही है काँटा
तभी तो छोड़ के
चल दिए गोविन्दा
शादी से पहले की
शादी में न बातें
कितनी सुहानी थीं
अब नहीं वो रातें
लड़ना ही, भिड़ना ही
है रोज़ का धंधा
और वादों-इरादों का
अब कहाँ है मौसम
झुमके दिला दो जी
कहते नहीं हैं हम
जो भी है, सही है
झुकेगा न पुष्पा
सदियों से दुनिया का
यही तो है क़िस्सा
प्रेम और प्यार बस
एक तरह का नशा
चढ़ता है शाम को
उतर जाए दुपहरिया
राहुल उपाध्याय । 13 फ़रवरी 2023 । सिएटल
न डाक्यूमेंट्री बनी हम पे
न हम शॉर्ट सेल हो गए
क्या ख़ाक ज़िन्दगी जी
जी हम फेल हो गए
पढ़ने-लिखने-कमाने में ही
पूरी ज़िंदगी गुज़ार दी
दिन-रात-सुबह-शाम
कोल्हू के बैल हो गए
सामने से हटा लो मेरे
संस्कृति और संस्कार को
जो पग-पग रोकते
नकेल हो गए
कोई और क्या करेगा
हमें और शर्मसार
हम आप ही अपने
कॉफ़िन के नेल हो गए
हम कहाँ पात्र हैं
'दीवार' से शाहकार के
कि शर्ट में गाँठ बाँध
रिबेल हो गए
राहुल उपाध्याय । 10 फ़रवरी 2023 । सिएटल
ज़िन्दगानी में हम यूँ फेल हुए
लड़ते-मरते ही गुज़री ज़िन्दगी
कहने को कई खेल हुए
Posted by Rahul Upadhyaya at 7:11 AM
आपका क्या कहना है??
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डेढ़ साल
अठारह महीने पहले
एक घड़ा टूट गया
पानी तब भी बहुत था
आज भी बहुत है
तब भी घड़े से नहीं पीता था
पर तसल्ली तो थी
कि जब भी चाहूँ
पी सकता हूँ
राहुल उपाध्याय । 6 फ़रवरी 2023 । सिएटल
मैं अब उठकर लाइट जलाता/बुझाता नहीं हूँ
अलेक्सा से कह देता हूँ
बाहर के हालात का जायज़ा लेने के लिए
मैं अब पर्दे नहीं हटाता
सर्वेलेंस कैमरे की एप में देख लेता हूँ
मैं अब दोस्तों से नहीं मिलता
वीडियो कॉल कर लेता हूँ
मैं अब खाना नहीं बनाता
खाना मँगवा लेता हूँ
चैटजीपीटी मेरा क्या बिगाड़ेगी
मैं कब का फ़ालतू हो चुका हूँ
राहुल उपाध्याय । 4 फ़रवरी 2023 । सिएटल
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:03 AM
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