मुझमें कई सारी कमियाँ हैं
मैं इंसान को इंसान ही समझता हूँ
मुझे वो किसी का पिता, भाई या बेटा नहीं दिखता
न किसी संस्था का संस्थापक, अध्यक्ष या ख़ज़ांची
या ड्राइवर या दर्ज़ी या ख़ानसामा
कुछ भी नहीं
यही हाल सबके लिए है
चाहे पुजारी हो, माँ हो, बेटी हो, बहन हो
हिंदू हो, मुसलमान हो, इंसान हो
सब एक जैसे दिखते हैं
बस काँन्टेक्स में जोड़ने में दिक्कत होती है
एक ही नाम के एक से ज़्यादा प्राणी हो तो
क्या किया जाए?
अमुक के पति, अमुक की पत्नी, अमुक की बहन?
माइक्रोसॉफ़्ट का सहकर्मी?
सण्डे वॉक ग्रुप का साथी?
प्लेन में मिला रमेश?
जगजीत सिंह का फ़ैन नवीन?
उसका क्या करूँ जो किसी का ड्राइवर था?
अब तक उसके साथ ड्राइवर लिखने की
हिम्मत नहीं जुटा पाया हूँ
राहुल उपाध्याय । 25 फ़रवरी 2023 । सिएटल
4 comments:
वाह वाह
खूब!कुछ अलहदा सा एहसास समेटे अभिनव सृजन।
"मुझमें कई सारी कमियाँ हैं
मैं इंसान को इंसान ही समझता हूँ"
लाजवाब सृजन।
बहुत उम्दा ।
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