Saturday, February 25, 2023

मुझमें कई कमियाँ हैं

मुझमें कई सारी कमियाँ हैं

मैं इंसान को इंसान ही समझता हूँ 

मुझे वो किसी का पिता, भाई या बेटा नहीं दिखता

न किसी संस्था का संस्थापक, अध्यक्ष या ख़ज़ांची 

या ड्राइवर या दर्ज़ी या ख़ानसामा 

कुछ भी नहीं 


यही हाल सबके लिए है

चाहे पुजारी हो, माँ हो, बेटी हो, बहन हो

हिंदू हो, मुसलमान हो, इंसान हो


सब एक जैसे दिखते हैं


बस काँन्टेक्स में जोड़ने में दिक्कत होती है 

एक ही नाम के एक से ज़्यादा प्राणी हो तो

क्या किया जाए?

अमुक के पति, अमुक की पत्नी, अमुक की बहन?

माइक्रोसॉफ़्ट का सहकर्मी?

सण्डे वॉक ग्रुप का साथी?

प्लेन में मिला रमेश?

जगजीत सिंह का फ़ैन नवीन?


उसका क्या करूँ जो किसी का ड्राइवर था?

अब तक उसके साथ ड्राइवर लिखने की

हिम्मत नहीं जुटा पाया हूँ 


राहुल उपाध्याय । 25 फ़रवरी 2023 । सिएटल 


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4 comments:

Onkar Singh 'Vivek' said...

वाह वाह

मन की वीणा said...

खूब!कुछ अलहदा सा एहसास समेटे अभिनव सृजन।

Rupa Singh said...

"मुझमें कई सारी कमियाँ हैं
मैं इंसान को इंसान ही समझता हूँ"
लाजवाब सृजन।

दीपक कुमार भानरे said...

बहुत उम्दा ।