दु:ख बिन जीऊँ यहाँ
के दुनिया में आ के
दु:ख ना फिर हुआ कभी
ख़ुद को जान के
पास है मेरे अब सब कुछ
नग़मे प्यार भरे
गली-गली क्यों मैं ढूँढूँ
ख़ुशियाँ साथ पलें
मैं हूँ जहाँ, वहाँ सब कुछ
साथ मेरे
मेरे प्राण रे
चले गए जो भी सहारे
उनका शोक नहीं
जितना था साथ हमारा
उतना साथ सही
बचे हैं जितने भी दिन अब
जीऊँगा नहीं
भर के आह मैं
राहुल उपाध्याय । 4 सितम्बर 2021 । सिएटल
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