जो जग में लाता है उसे पिता कहते हैं
जो जग चलाता है उसे ईश्वर कहते हैं
जो जग लाता है उसे वेटर कहते हैं
जो जग जाता है उसे सजग कहते हैं
जो फल पाता है उसे सफल कहते हैं
जो सुर में गाता है उसे ससुर कहते हैं
जो गीत गाता है उसे सिंगर कहते हैं
जो गुण गाता है उसे फ़ैन कहते हैं
जो गुनगुनाता है उसे गीज़र कहते हैं
जो देखता है उसे दर्शक कहते हैं
जो सुनता है उसे श्रोता कहते हैं
जो बकता है उसे वक़्ता कहते हैं
जो पढ़ता है उसे पाठक कहते हैं
जो छापता है उसे प्रकाशक कहते हैं
जो छप जाता है उस पर लेखक लेखक होने का शक़ करते हैं
जो राष्ट्रपति नहीं बन सकता वो उपराष्ट्रपति बन जाता है
जो कप्तान नहीं बन सकता वो उपकप्तान बन जाता है
जो भौंक नहीं सकता वो उपभोक्ता बन जाता है
सिएटल । 425-445-0827
3 अप्रैल 2009
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जग = jug; वेटर = waiter; सिंगर = singer; फ़ैन = fan;
गीज़र = geyser; water heater
Friday, April 3, 2009
पंचलाईन #4
Posted by Rahul Upadhyaya at 1:04 AM
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3 comments:
बढिया लिखा है।बधाई।
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना बहुत-बहुत बधाई...
bahut khoob...
achha hai, and quite funny too...
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