Sunday, August 29, 2021

ख़ुशनसीब

उसने मुझे अपना कहा और कहती रही कहती रही कहती रही कहती रही कहती रही रात कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला सब मुझे बेसुरा कहते हैं और वह मेरे गीत सुनने को लालायित रहती है प्रेम करती है प्रेम में अंधी नहीं है वो अच्छे-बुरे की समझ है उसे न जाने क्या पसन्द है उसे मेरे बोल? मेरे भाव? मेरा दिल? हम मिलें नहीं कभी मिलने की उत्सुकता में सातवें आसमान पर बैठी है क्यूँ ख़ुशी मुझे ढूँढ ही लेती है और मुझे ख़ुशनसीब कहने पर कर देती है मजबूर क्यूँ अफ़ग़ानिस्तान मुझसे दूर है और जन्नत मेरे पास है क्यूँ कोराना तो दूर की बात है मुझे सरदर्द भी नहीं हुआ आज तक है राहुल उपाध्याय । 29 अगस्त 2021 । सिएटल https://mere--words.blogspot.com/2021/08/blog-post_29.html?m=1

Saturday, August 28, 2021

Re: इतवारी पहेली: 2021/08/22



रवि, 22 अग॰ 2021 को पू 12:04 पर को Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> ने लिखा:

इतवारी पहेली:


सच है कि स्वर्ण पदक ### ##

झूठ है कि गोरी का तन ## ###


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 29 अगस्त को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 22 अगस्त 2021 । सिएटल


इतवारी पहेली: 2021/08/29


इतवारी पहेली:


हिमालय आओ तो ## ## ##

हाँ, चढ़ाई चढ़ने की #%# ##


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 5 सितम्बर को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 29 अगस्त 2021 । सिएटल















Friday, August 27, 2021

रोका ना जाए दिलदार

https://youtu.be/YMyJmgG0L5E


रोका न जाए दिलदार

हाँ, हाँ जग ने किया है स्वीकार 


लाख जतन किए

लाख दुआएँ माँगी

रोकूँ किसी को

स्वप्न दफ़न हुए

आग लगा दी मैंने

अपने किसी को

पीड़ा हुई अपरम्पार 


अपने ही हाथों 

अपने किसी को मैंने

राख किया है 

उनकी बातें 

उनके वादों को

याद किया है 

आँसू भी आए कई बार


आखरी दुख दिया

आखरी दिन अब

दुख न वो देगा

जितना दिया बस

उतना दिया अब

सुख भी न देगा

सबसे किया नमस्कार 


अपने जहां में

कोई नहीं अब

घाव भरेगा

मुझसे उतना 

उससे भी आधा 

प्यार करेगा 

जो था वही था मेरा प्यार


राहुल उपाध्याय । 27 अगस्त 2021 । सिएटल 


काग़ज़ की दुनिया

आज मुझे एक दुनिया मिली

कोई घर बदल रहा था

तो उसे लावारिस यूँही छोड़ गया था


मैंने उसे सीने से लगाया 

अपने घर में 

अपने घर को

सजाना चाहा


जैसा चाहूँ 

वैसा क्या कर सकता हूँ?

सीलिंग से उसे क्यों 

समानांतर रहना होगा?

क्यों आड़ा-तिरछा उसे मैं

लगा नहीं सकता?

कौनसा क़ानून है जो मैं तोड़ रहा हूँ?


काग़ज़ की दुनिया सम्हाली नहीं जाती

दुनिया को क्या मैं ख़ाक बदलूँगा?


राहुल उपाध्याय । 27 अगस्त 2021 । सिएटल 




Tuesday, August 24, 2021

महँगा खाना खाने के लिए

महँगा खाना खाने के लिए

महँगे कपड़े पहनते हैं 

और वो दो जून की रोटी में

दिन रात एक कर देते हैं 


इसमें कुछ ग़लत नहीं है 

यह सोच ही ग़लत है 


और ऐसा भी नहीं 

कि यह बात सेठ-सेठानी की है 

हम-आप भी इसमें शामिल हैं

हम में भी महँगा पहनने की 

महँगा खाने की ख़्वाहिश है


अनुष्का ही नहीं 

जो लाखों का लहंगा पहनती है 

हम-आप भी इसमें शामिल हैं

मोदी जी ही नहीं 

जो लाखों का सूट पहनते हैं 

हम-आप भी इसमें शामिल हैं


ये ख्वाहिश है कि हवस है

जिसके आगे हम बेबस हैं?


समाज सेवा भी करनी है 

और रोलेक्स घड़ी भी पहननी है 


क्या ख़ूब कमाना

और उसे जैसे चाहे खर्च करना 

बुरा है?


क्या अच्छा है 

क्या बुरा है?


निर्णायक कौन?


रोज़ गाय काट कर के खाना

समृद्ध और विकसित देशों में

वहाँ के प्रणेताओं के लिए

समाजसेवियों के लिए

बुद्धिजीवियों के लिए

जनसामान्य के लिए

बुरा नहीं है 


उन देशों से

उन प्रणेताओं से

उन समाजसेवियों से

उन बुद्धिजीवियों से

हाथ मिलाना

उन्हें गले लगाना

उनके धन को मन्दिर में, पूजा में इस्तेमाल करना

बुरा नहीं है 


न कुछ अच्छा है, न बुरा है 


बस क़ानून तोड़ों तो ग़लत है

वरना सब सही है 


महँगा खाना खाने के लिए

महँगे कपड़े पहनते हैं 

और वो दो जून की रोटी में

दिन रात एक कर देते हैं 


इसमें कुछ ग़लत नहीं है 

यह सोच भी ग़लत नहीं है 


राहुल उपाध्याय । 24 अगस्त 2021 । सिएटल 








चाँद छुआ, आफ़ताब छुआ

उसका सूरज 

मेरा सूरज 

एक है


उसका चाँद 

मेरा चाँद 

एक है


वो देखे 

उधर से

मैं देखूँ 

इधर से

कोण अलग

स्थान अलग

नज़र मगर एक है


वो हूर है 

मेरा प्यार है

प्यार का किया इज़हार है

उसने भी किया इकरार है 


नज़रों से मिली न नज़र कभी 

बस चाँद छुआ, आफ़ताब छुआ

जहाँ उसने छुआ, वहाँ मैंने छुआ


जिन आँखों को कभी देखा ही नहीं 

जब देखूँगा क्या मंजर होगा 

क्या खुलेंगी, क्या बोलेगी 

क्या भाव बड़ा सुन्दर होगा

वो छलकेगी या चमकेगी 

क्या खुशियों भरा वो घर होगा

क्या कोलाहल में क्या भीड़ में 

वो शांत शीतल मंदर होगा 

कुछ मन में तो कुछ बाहर होगा

या सब का सब अंदर होगा 


राहुल उपाध्याय । 24 अगस्त 2021 । सिएटल 


Sunday, August 22, 2021

इससे पहले कोई मौत मेरे इतने क़रीब नहीं हुई

इससे पहले कोई मौत मेरे इतने क़रीब नहीं हुई 

जितनी क़रीब 

मेरे घर में 

मेरे कमरे में 

मेरे पलंग से जुड़े पलंग पर

मेरे हाथ में लिए हाथ की हुई 


ऐसा लगता है 

जैसे मैंने ही

किसी ग़ुब्बारे से 

हवा निकाल दी हो

और ग़ुब्बारे को जलाकर भस्म कर दिया हो

ताकि कोई उसमें फिर से प्राण न फूंक सके


सारा घर ख़ाली-ख़ाली है 

कबाड़ से भरा


रूई जिन्हें बड़ा सम्भाल कर मम्मी रखती थीं

छोटी-छोटी प्यारी-प्यारी बत्तियाँ बनाया करती थीं 

अब किसी काम की नहीं 


दीपक मंजे हुए क़रीने से रखे हैं 

अब वे कभी प्रज्ज्वलित नहीं होंगे 


माचिस की तीली अब नहीं जलेगी 


ठाकुर जी न नहाएँगे, न धोएँगे 

न वस्त्र ही बदलेंगे


उन सब चीजों में 

जिनमें उनके प्राण बसते थे

अब निर्जीव है 


अब मुझे 

मौत से डर लगता है 

हो भी तो

मेरे घर में 

मेरे कमरे में 

मेरे पलंग से जुड़े पलंग पर न हो

मेरे हाथों में लिए हाथ की न हो


राहुल उपाध्याय । 22 अगस्त 2021 । सिएटल 




प्राण पखेरू उड़ जाए तो

प्राण पखेरू उड़ जाए तो 

ढाँचा टूटता जाता है 

सर झुकाए आता है जो 

सर उठाए न जाता है 


आता है तो बेबस सा

नन्हा-मुन्ना होता है 

हट्टा-कट्टा भी जाए तो 

गाते-बजाते न जाता हैं


अपना-अपना रस्ता इंसां 

जीवन में चुन ले भी तो 

अंत समय में गंतव्य सभी का 

तय एक हो जाता है 


इसकी यादें, उसकी बातें 

सब यही रह जाती हैं 

किसने किसको बाँधा है 

कौन कहाँ कुछ ले जाता है 


हम बतलाए तुम भी सुन लो 

जीवन है एक अनमोल नगीना 

जब तक है ये तब तक है ये

बाद नज़र नहीं आता है


राहुल उपाध्याय । 22 अगस्त 2021 । सिएटल 




इतवारी पहेली: 2021/08/22

इतवारी पहेली:


सच है कि स्वर्ण पदक ### ##

झूठ है कि गोरी का तन ## ###


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 29 अगस्त को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 22 अगस्त 2021 । सिएटल


Saturday, August 21, 2021

जीवन

जीवन जड़ में, जड़ जीवन में

परिवर्तित होता जाता है 

पृथ्वी घूमे, हम भी झूमें

जग आनंदमय हो जाता है 


किसकी किससे प्रीत यहाँ पर

सब क्षण-दो-क्षण के नाते हैं

अपना-पराया यहाँ कोई नहीं 

सब कैमिकल की बातें हैं


दिखे पात्र दुखी चलचित्र में

मन द्रवित हो जाता है 

जितना कभी किसी से न जुड़ा 

दिल उससे जुड़ जाता है 


मौसम-बन्धु-बान्धव-आदि

सब आते-जाते रहते हैं 

दिल आता है, दिल जाता है 

चलायमान सब रहते हैं 


जीवन जड़ में, जड़ जीवन में

परिवर्तित होता जाता है 


राहुल उपाध्याय । 21 अगस्त 2021 । सिएटल 


Thursday, August 19, 2021

कितनी जल्दी हम भूल जाते हैं

कितनी जल्दी हम भूल जाते हैं 

और उस दिन का जश्न मनाते हैं 

जिस दिन लाखों का संहार हुआ था

रंग-बिरंगी कपड़ों में सज कर

जय-जयकार का गान सुनाते हैं 


आज दुनिया के एक कोने में जो हो रहा है 

एक दिन हमारे घर हुआ था

कितनी जल्दी हम भूल जाते हैं 


आज किसी को कम हम आँक रहे हैं

कल हमें कोई कम आँक रहा था

आज जिनके दुख पर हम हँस रहे हैं

कल हम पर शायद कोई हँस रहा था

आज शरण की है आस में कोई 

कल हम भी ऐसे भटक रहे थे

आज दुत्कार रहे हैं हम किसी को

कल हमें भी कोई धकेल रहा था

कितनी जल्दी हम भूल जाते हैं 


राहुल उपाध्याय । 19 अगस्त 2021 । सिएटल 




पराया एक कलम भी दे दे

पराया एक कलम भी दे दे

अच्छा लगता है

अपना कोई खून भी दे दे

कम पड़ता है 

जीवन का यही निचोड़ है यारो

अपेक्षाओं से ही जग चलता है 


न बदला है, न बदलेगा 

अपेक्षाओं का दौर यूँही चलेगा

न बदला कोई, न बदलोगे तुम

लाख साधु-संत-वेबिनार सुन लो

जीवन का स्रोत न सूखेगा


राहुल उपाध्याय । 19 अगस्त 2021 । सिएटल 



Wednesday, August 18, 2021

मरण सी सुसुप्त है

एक लौ बुझ गई 

एक लौ जल रही

जो बुझ गई, वो याद है 

जो जल रही, विषाद है

क्या यह इस देह की भूल है

या उस देह की भूल है

या देह की ही भूल है 

और आत्मा का इसमें कोई हाथ नहीं 

आत्मा जो जले न कटे, उससे क्या लाभ है 

जो न फले-फूलें, न सूखे-सूखाए 

जिसका न कोई मुक़ाम है

ऐसी आत्मा से मेरा न कोई काम है

कहने को अमर है

पर मरण सी सुसुप्त है


राहुल उपाध्याय । 18 अगस्त 2021 । सिएटल 



Sunday, August 15, 2021

पहेली 2021/08/15


इतवारी पहेली:


जब बचा कहीं कोई ### #

परायों को किया शुरू ####


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 22 अगस्त को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 15 अगस्त 2021 । सिएटल















Saturday, August 14, 2021

मैं तुझसे दूर, तेरे साथ

मैं 

तुझसे दूर

तेरे साथ 

इस अपार्टमेंट में रहता हूँ 


क्या है मेरा

क्या है तेरा

सब सोचता मैं रहता हूँ 


ये स्वेटर-जैकेट 

ये वॉकर-घड़ी 

ये अलेक्सा-दीपक

ये लड्डू-गोपाल-ये तीज-त्योहार 

सब बेमानी लगते हैं 


तू थी

सब था

तेरे बिन सब ख़ाली-खाली लगते हैं 


तुझे साथ ले

मैं आया था

तुझे साथ ले

मैं जाऊँगा 

यह पहली बार होगा जब 

तुझे न कहीं देख पाऊँगा 

मातृ-हीन उस वीरान देश में 

मातृ-हीन उस विशाल देश में 

तुझे बहा मैं आऊँगा 


क्या सैलाना के उस मंदिर में मैं 

एक दिन भी रूक पाऊँगा 

क्या दिल्ली, क्या रतलाम 

जहाँ भी मैं जाऊँगा

क्या तुझे नहीं मैं पाऊँगा 

दुनिया का है वो कौनसा कोना

जहाँ तुझे नहीं मैं पाऊँगा 


राहुल उपाध्याय । 14 अगस्त 2021 । सिएटल