Thursday, June 30, 2022

मैंने दोहा में ग़ज़ल लिखी

मैंने दोहा में ग़ज़ल लिखी

सब ने कहा

ये तो ग़ज़ल है 


मैंने बाली से कंगन लिए 

सब ने कहा 

ये तो कंगन हैं 


मैंने काठगोदाम से सेब लिए

सब ने कहा

ये तो ताज़ा हैं


हरिद्वार जब बंद था

सब ने कहा

चाबी से खोल लो


अमृतसर में था

सब ने कहा 

फिर मन क्यूँ उदास था?


अरबी में ख़त था

पढ़ा ही नहीं गया

इतनी हल्दी लग चुकी थी


राहुल उपाध्याय । 1 जुलाई 2022 । सूरत 







Wednesday, June 29, 2022

घर पास आते-आते

घर पास आते-आते

सब दूरी बढ़ाने लगते हैं 

जब हम सफ़र करते हैं 


न तुम ख़ास 

न मैं ख़ास 

तुम्हारे जैसे

और मेरे जैसे

कौड़ी के अठारह हैं

सब

एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं


सब

पढ़-लिख कर के

मेहनत आदि कर के

विदेश जाते हैं 

घर आते हैं 

किसी न किसी 

जद्दोजहद से गुज़रते हैं 

अब तुम्हारे क़रीब आए

तो तुम गले पड़ जाओगे 


जितने खुलेपन से दूर वालों से

बात की जा सकती है 

पास वालों से उतनी ही गोपनीयता 

बरती जाती है 


घर पास आते-आते

सब दूरी बढ़ाने लगते हैं …


राहुल उपाध्याय । 29 जून 2022 । दोहा (क़तर)







Tuesday, June 28, 2022

सागर शांत है

सागर शांत है

गुर्राता नहीं है 

उबलता नहीं है 

ग़ुस्सा नहीं करता


हाँ 

कभी-कभी 

पत्थरों पर

अपना सर ज़रूर फोड़ लेता है 


लेकिन 

मोटे तौर पर 

वह एक शांत प्राणी है 


इसका यह मतलब नहीं 

कि वह आपका हितैषी है 

जो घुसा

डूबा 

या ठण्ड से मरा

बचने की कोई योजना नहीं है 

बचाने के लिए सोचना पड़ता है 

सोचने के लिए गर्माहट चाहिए 


राहुल उपाध्याय । 28 जून 2022 । सिएटल 



Sunday, June 26, 2022

इतवारी पहेली: 2022/06/26


इतवारी पहेली:


शादी में नाश्ते से रूठें ###

चाय नहीं क्यों दो ## ##?


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 3 जुलाई को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 26 जून 2022 । सिएटल 
















Re: इतवारी पहेली: 2022/06/19



रवि, 19 जून 2022 को पू 1:27 पर को Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> ने लिखा:

इतवारी पहेली:


सूरज पिता और ## ## #

प्रकृति ही हमारी #%## #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 26 जून को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 19 जून 2022 । सिएटल 
















Saturday, June 25, 2022

मैं निराला हूँ

मैं निराला नहीं हूँ 

कि तत्सम भाषा में

प्रकृति का सौन्दर्य गूँथूँ 


मुझे 

प्रभावित करती हैं 

ख़बरें 

ख़ासकर बुरी ख़बरें 

मुझे 

दिखते हैं 

चारों ओर ध्वस्त होते मंजर


मैं

चाहकर भी

शहद नहीं देख सकता

शहद नहीं घोल सकता


मैं 

जेल पेन से कविता नहीं लिखता 


मैं 

सफ़ेद पन्ने काले करता हूँ 


मैं निराला नहीं हूँ 

मैं निराला हूँ 


राहुल उपाध्याय । 25 जून 2022 । सिएटल 




संस्कृति

लड़कियाँ 

अब खुले बाल रखती हैं 

चोटियाँ नहीं बनातीं

छोटे रखती हैं 

साड़ी पहन कर काम नहीं होते

असुविधा होती है

फ़ोटो खींचे जा सकते हैं 

खींचवाए जा सकते हैं 

शो-पीस बना जा सकता है 


एक परिधान

हाशिये पर चला जाता है 

एक साज-सज्जा 

लुप्त हो जाती है 

संस्कृति की नींव 

खोखली होती जाती है 


जिनकी संस्कृति नहीं 

कितने भले हैं

हज़ारों साल से वही हैं

सुन्दर 

अति सुन्दर 

मनमोहक 

पवित्र 

न गर्भपात का क़ानून 

न समलैंगिक अधिकारों की दुहाई 

न गन-हिंसा की मगजमारी 

न ईंधन की महंगाई 

कुछ भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ता


राहुल उपाध्याय । 25 जून 2022 । सिएटल 



Friday, June 24, 2022

नीली डंडियाँ

सागर की लहरें 

उतने दिल

नहीं तोड़ती होंगी

जितने मैं तोड़ देता हूँ

चैट हटा कर


लहरें 

जब लिखा मिटाती है

तो कुछ तो तसल्ली होती है

कि नादान हैं

पढ़ीं-लिखीं नहीं हैं

नहीं जानतीं कि

वे क्या कर रहीं हैं


और यहाँ उलटा

नीली डंडियाँ 

झूठा कह देतीं हैं

कि मैंने सब पढ़ लिया 


इन्हें और उन्हें 

क्या मालूम

कि मैंने नौ से पाँच 

खुद को गिरवी पर रख दिया है

बाक़ी समय

पकाता हूँ, खिलाता हूँ

धोता हूँ, सुखाता हूँ


इन सब के बीच

न तो समय है

न उर्जा

न इच्छा

कि

किसी के दिल से निकली

मार्मिक

सशक्त

भावपूर्ण 

कविता

ग़ज़ल 

रूबाई

सवैया

कुण्डलियाँ 

मुक्तक

क्षणिकाएँ 

देखूँ

शब्दों के मायने जानूँ

और उन पर सोचूँ 


सच

कितना मुश्किल है जीवन

जब रोटी-कपड़ा-मकान मुहैया हो जाते हैं आसानी से


राहुल उपाध्याय । 10 जुलाई 2020 । सिएटल




एकतरफ़ा प्यार

कौन कहता है कि

इश्क़ छुपता नहीं है 

फिर ये एकतरफ़ा प्यार क्या है?


वो क्यों नहीं देख पाती है कि

मैं हर पल बेचैन हूँ 

जोहता उसके नैन हूँ 

रहता उसके साथ हूँ 

उसका ही मैं दास हूँ 

मुस्कान पे उसके 

छिड़कता अपनी जान हूँ 

लहराती ज़ुल्फ़ 

शानों पे दुपट्टा

आँखों में चमक

मोती से दांत 

हर लेते हैं मेरा

सब कुछ अकस्मात् 


क्यूँ देखती नहीं है 

समझती नहीं है 

मोहब्बत नहीं 

तो नफ़रत ही कर ले

कुछ तो मेरी इज़्ज़त रख ले


राहुल उपाध्याय । 24 जून 2022 । सिएटल 

http://mere--words.blogspot.com/2022/06/blog-post_8.html?m=1




एकतरफ़ा प्यार

कौन कहता है कि

इश्क़ छुपता नहीं है 

फिर ये एकतरफ़ा प्यार क्या है?


वो क्यों नहीं देख पाती है कि

मैं हर पल बेचैन हूँ 

जोहता उसके नैन हूँ 

रहता उसके साथ हूँ 

उसका ही मैं दास हूँ 

मुस्कान पे उसके 

छिड़कता अपनी जान हूँ 

लहराती ज़ुल्फ़ 

शानों पे दुपट्टा

आँखों में चमक

मोती से दांत 

हर लेते हैं मेरा

सब कुछ अकस्मात् 


क्यूँ देखती नहीं है 

समझती नहीं है 

मोहब्बत नहीं 

तो नफ़रत ही कर ले

कुछ तो मेरी इज़्ज़त रख ले


राहुल उपाध्याय । 24 जून 2022 । सिएटल 



तो आँख लग भी जाए

ग़म है फ़िज़ा में 

न मिलती दवा है

वो पास आए

दिल से लगाए

तो आँख लग भी जाए


दर्द है, जवाँ है 

न मिलती दवा है

वो पास आए

दिल से लगाए

तो आँख लग भी जाए


हालात भी कुछ ठीक नहीं हैं हमारे 

क्या फ़ायदा जब डूबे हों चाँद-सितारे 

किससे कहें हम, किसको कहें हम

वो पास आए

दिल से लगाए

तो आँख लग भी जाए


हाँ आज भी रखते हैं हम आस उनसे

जो हो गए दूर बन के ख़िज़ाँ चमन से

जो रहते ख़फ़ा हैं, न करते वफ़ा हैं

वो पास आए

दिल से लगाए

तो आँख लग भी जाए


दाग भी लग गए हैं जो अब ना धुलेंगे 

राज़ भी दब गए हैं जो अब ना खुलेंगे

हमें इससे क्या है, हमें तो पता है

वो पास आए

दिल से लगाए

तो आँख लग भी जाए


राहुल उपाध्याय । 24 जून 2022 । सिएटल 


Thursday, June 23, 2022

पेड़? ये किस चिड़िया का नाम है?

जो सेब

पेड़ से मिलते हैं 

और दुकान पर मिलते हैं 

अलग होते हैं 


दिखते अलग हैं 

लगते अलग हैं 

फेसियल किए हुए

आकर्षक, चमकीले-दमकीले लगते हैं

दाग नहीं होते

आड़ें-टेढ़ें नहीं होते

कीड़े नहीं निकलते


क़ीमत बढ़ जाती है 

माँग बढ़ जाती है 


लोग 

पेड़ से लेना बंद कर देते हैं 

कौन इतनी झंझट पाले?

मेहनत की कमाई से

बैठे-बिठाए अच्छे, साफ़-सुथरे फल मिल जाते हैं 


जिससे लेना बंद कर दिया 

उसे देखना भी क्यों?

और पेड़ भी दिखना बंद हो जाते हैं 


कुछ दिनों बाद,

पेड़?

ये किस चिड़िया का नाम है?


न फल पेड़ से आते हैं 

न दूध गाय से आता है 

सब दुकान से आता है 


थोड़े दिनों बाद 

दुकानें भी न रह पाएँगी 

सब फ़ोन से मिल जाया करेगा


राहुल उपाध्याय । 23 जून 2022 । सिएटल 







भूल भुलैया - 2

भूल भुलैया- 2 एक वाहियात और एक बहुत अच्छी फ़िल्म है। 


वाहियात इसलिए कि कहानी के नाम पर कुछ नहीं है। 


बहुत अच्छी इसलिए कि कहानी न होते हुए भी आज के संदर्भों को जोड़ती हुए तेज गति से दौड़ती यह फ़िल्म दर्शक को बाँधे रखती है। इसका श्रेय चुस्त पटकथा, अनुपम निर्देशन और उच्च कोटि के अभिनय को जाता है। 


कार्तिक आर्यन अब अभिनय में परिपक्व हो गए हैं। अमोल पालेकर से लेकर नसीरूद्दीन शाह सब अच्छे अभिनेता हैं। लेकिन न नवाज़, न मनोज बाजपेयी वैसा नृत्य कर सकते हैं जैसा कार्तिक करते हैं या अल्लू अर्जुन। तभी इनका रुतबा है। ये स्टार हैं। 


फ़िल्म को मनोरंजक बनाने में स्टार का बड़ा हाथ होता है और यह आवश्यक है। 


फ़िल्म ख़त्म होने पर इस फ़्रेंचाइज़ का हिट गाना बजता है - हरे राम हरे कृष्ण- स्क्रोलिंग टाईटल्स के साथ। वाह क्या संगीत है, क्या गायन है और क्या सम्मोहित करने वाला नृत्य है। कार्तिक का फुटवर्क कमाल का है। 


घर पर देखने का फ़ायदा यह है कि यह गाना बार-बार देखा जा सकता है। 


तबू, राजपाल यादव, और संजय मिश्रा की अदायगी भी प्रशंसनीय है। 


पैसा वसूल फ़िल्म है। 


राहुल उपाध्याय । 23 जून 2022 । सिएटल 


Tuesday, June 21, 2022

बस यही बात ज़माने को बुरी लगती है

मेरी रातों में, मेरे दिन में वो साथ रहती है 

बस यही बात ज़माने को बुरी लगती है

मेरे गीतों में झलक उसकी सदा दिखती है 

बस यही बात ज़माने को बुरी लगती है


मेरे हर तार में वो नज़र आती है 

मेरी हर साँस में वो साँस ले आती है उसकी ख़ुशबू मेरे गीतों को जवां रखती है 

बस यही बात ज़माने को बुरी लगती है


मैंने बचपन से उसे साथ-साथ देखा है

अपनी आँखों से उसे साफ़-साफ़ देखा है 

उसकी रूनझून मेरे कानों में सदा रहती है 

बस यही बात ज़माने को बुरी लगती है


जो कहूँ सच तो मैं सच में बुरा बनता हूँ 

न कहूँ सच तो मैं बिक गया हूँ लगता हूँ

ये जो उलझन, परेशान न मुझे करती है 

बस यही बात ज़माने को बुरी लगती है


राहुल उपाध्याय । 21 जून 2022 । सिएटल 



उम्मीद

जब से ब्रेकअप हुआ है 

घर ज़्यादा ही साफ़ रखता हूँ 

न जाने वो कब आ जाए


वह नहीं चाहती कि

घर में चीज़ें फैली रहें

बिस्तर बना न हो

कपड़े बिखरे पड़े हो

सिंक में गंदे बर्तन हों

कहीं नमक गिरा हो

कहीं हल्दी के दाग हो

काउंटर पूरा साफ़ होना चाहिए 

क्लटर बिलकुल पसन्द नहीं 

सारी चीजें या तो अलमारी में हों

या दराज़ में

एक भी फ़ालतू चीज़ बाहर नहीं दिखनी चाहिए 


जानता हूँ 

वह बिन बुलाए 

या बिन बताए 

नहीं आएगी


लेकिन घर साफ़ रखने में 

बुराई ही क्या है 


यह सोच ही रहा था कि

उसका टेक्स्ट आ गया 

(जिसकी इस जन्म में तो कोई उम्मीद नहीं थी)

फ़ोन पर बात भी हो गई

(यह तो सात जन्म में भी सम्भव नहीं था)


बस वह नहीं कहा

जो मैं सुनना चाहता था 


उम्मीद पर दुनिया टिकी है 

और आशिक़ तो नहा-धो के बैठा है 


राहुल उपाध्याय । 21 जून 2022 । सिएटल