Monday, March 25, 2019

जिनसे हम आज़ाद हुए

जिनसे हम आज़ाद हुए
वे इतने सभ्य निकले 
कि नई पीढ़ी 
उन्हें ही गले लगा बैठी

और जिस भाई से उन्होंने 
हमें जुदा किया
उससे सम्बन्ध इतने बिगड़े
कि उससे बड़ा कोई दुश्मन नहीं 

यानी जाते-जाते भी
इतना करम कर गए
कि आस्तीन के साँप को
आस्तीन से जुदा कर गए?

ऐसा नहीं कि 
वे पहले असभ्य थे
और बाद में सभ्य हुए

वे जैसे थे
वैसे ही रहे
बस रिश्ता बदल गया

स्वामित्व ख़त्म होते ही
सम्बन्ध सँवर जाते हैं
बिगड़ते नहीं 

और जहाँ बराबरी का रिश्ता हो
और दोनों बराबरी करने पर उतर आए
तो सम्बन्ध बिगड़ जाते हैं 

राहुल उपाध्याय 25 मार्च 2019 सिएटल

Monday, March 18, 2019

हर तरफ़ भक्त यही गीत गाते हैं

हर तरफ़ भक्त यही गीत गाते हैं
हम उनके, वे हमारे हैं

कितनी जुमलेबाजी है उनके वादों में 
पढ़े-लिखे भी दीवाने हो जाए
कितनी चतुराई है उनकी बातों में 
झूठे आँकड़े भी सच्चे हो जाए
आयुर्वेद से ब्रहमास्त्र तक के ख़ज़ाने हैं

एक हल्का सा इशारा उनका
अच्छे-खासे सितारे जमा हो जाए
बरसों से जमा की गई पूँजी 
रातों-रात हवा हो जाए
तानाशाह बनने के आसार नज़र आते हैं

किसी दौलत का किसी जायदाद का
कोई भी लालच नहीं है उनको 
छप्पन इंची सीना है
सीना पुरजवाँ इनका
फिर क्यूँ किस बात से वे घबराते हैं
दो-दो जगह से चुनाव लड़े जाते हैं
भ्रष्ट नेताओं से सम्बन्ध जोड़े जाते हैं

अरूणाचल प्रदेश की समस्या 
जैसी की तैसी है
धारा 370 की दशा 
जैसी की तैसी है
झूठे सपने-सब्ज़-बाग़ क्यूँ दिखाए जाते हैं

(कैफ़ी आज़मी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय 17 मार्च 2019 सिएटल

Friday, March 15, 2019

तेरी दुनिया से हो के मगरूर चला

तेरी दुनिया से हो के मगरूर चला
मैं बहुत दूर, बहुत दूर, बहुत दूर चला

इस क़दर दूर कि फिर लौट के भी सकूँ
ऐसी मंज़िल कि जहाँ ख़ुद को भी मैं पा सकूँ
और मजबूरी है क्या इतना भी बतला सकूँ

आय बढ़ भी जो गई, और मैं माँगूँगा
नागरिकता छोड़नी भी पड़ी तो सहर्ष छोड़ दूँगा 
किससे नाता है मेरा, नाता हर-एक से तोड़ लूँगा 

ख़ुश रहूँ मैं हूँ जहाँ, ये हैं दुआएँ मेरी
सबकी राहों से जुदा हो गईं राहें मेरी
कोई नहीं पास मेरे, बस हैं सदाएँ मेरी 

(प्रेम धवन से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय 15 मार्च 2019 सिएटल

Tuesday, March 12, 2019

क़ीमती ज़ेवर तिजोरी में

जहाँ चिमन भाई सोते थे
वहाँ चिकन बाई होता है
जहाँ मूल मंत्र दिया जाता था
वहाँ मल-मूत्र पाया जाता है

अष्टपदी को छोड़कर
स्टूपिड जोक्स चलते हैं
उपनिषद की तो बात क्या
सब अपनी सेट करते हैं

श्लोक और ऋचाएँ सिर्फ़
अंग्रेज़ी बघारने वालों के नामों में हैं 
और देश है कि नमो-नमो, हे-नमो में माहिर है
जब दुर्दशा इतनी व्यापक है
तो विनाश तो सुनिश्चित है

लेकिन यह भारत है
और भारत का इतिहास
इस बात का साक्षी है कि
जब साक्षरता शून्य मात्र थी
तब भी ज्योतिर्लिंग सजते थे
प्राचीन मंदिरों के प्रांगण
देवमन्त्र से गूँजते थे

जब इतना सब कुछ बच गया
तो आज तो हम सुशिक्षित हैं
ब्लॉग और पी-डी-एफ में 
अनुसंधान और संस्थानों में 
डिजिटल क्लाउड में 
धरोहर हमारी सुरक्षित है

लेकिन ठीक उसी तरह
जैसे क़ीमती ज़ेवर तिजोरी में
जिसे निकालने में हम हिचकते हैं

राहुल उपाध्याय 13 मार्च 2019 मुम्बई 

Saturday, March 2, 2019

कब, कहाँ, कौन है जीता?

कबकहाँकौन है जीता?
अशोक जीते, फिर भी हारे

जितने भी जीते, सब हैं हारे
जो जीते किसी किसी के सहारे 

मैं जीता हूँ केवल, जीता कहाँ हूँ
केवल साँसों की माला तो हार है प्यारे

हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब
सरहद की एक ओर ही नहीं लगते हैं नारे

हर एक माँ को अपने बच्चे लगते हैं प्यारे
और हमारी समझ कि बस हमारे हैं न्यारे 

राहुल उपाध्याय | 2 मार्च 2019 | सिएटल