Tuesday, December 15, 2015

आजकल टाईम देखने का भी टाईम नहीं है

आजकल 
टाईम देखने का भी टाईम नहीं है
टाईम देखो तो टाईम ख़र्च होता है

पता चलता है कि
दो व्हाट्सैप मैसेजेस आए हैं
तीन फ़ेसबुक अपडेट्स
और पचासों फ़ीड्स
जिनको देखते-देखते
घंटा कब निकल जाता है
पता ही नहीं चलता है

फ़ोन है
पर फ़ोन आता नहीं 

घड़ी है
पर घड़ी पहनते नहीं

घर है
पर घर पर मिलते नहीं 
(स्टारबक्स पर मिलें?)

हम जबसे स्मार्ट हुए है
तबसे चीज़ों का सही 
इस्तेमाल करना
भूल गए हैं

ये न सोचो 
इसमें अपनी
कार है कि जीप है
उसे अपना लो
जो भी करती भीड़ है
ये ज़िद छोड़ो
मुँह न मोड़ो
हर घर का दर्शन है
ये गराज है
इस गराज का
यही है
यही है
सदुपयोग
थोड़ी कुर्सियाँ 
थोड़े डब्बे
पिंग-पांग टेबल
दो-चार पंखे
यही है
यही है
इनका सही स्थान
ये गराज है
इस गराज का
यही है
यही है
सदुपयोग

15 दिसम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827
(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)





Friday, December 11, 2015

जब भी कोई फ़ैसला आता है


जब भी कोई फ़ैसला आता है
हम जज बन जाते हैं
और जब बात अपने पर आती है
तो वकालत करने लगते हैं

दो-चार
समाचार क्या पढ़ लिए
एक-दो
विडियो क्या देख लिए
पा जाते हैं
आधार
पर्याप्त 
किसी को भी
कोई भी
सज़ा
सुनाने के लिए

बस चले
तो
फाँसी पर लटका भी सकते हैं

अच्छा ही हुआ
हम
ज़्यादा 
पढ़े-लिखे नहीं
वरना
आज
किसी कोर्ट में होते
किसी न किसी पर
अपने पूर्वाग्रह
थोप रहे होते 

11 दिसम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Sunday, December 6, 2015

ये आँखें बोलती हैं


ये आँखें बोलती हैं
सब को तोलती हैं
ज़बाँ का, कान का काम
ख़ुद को सौंपती हैं

कहे इससे न मिलना
कहे उससे न मिलना
ये दुनिया है सयानी
दिलों को तोड़ती है

कहे इससे न मिलना
कहे उससे न मिलना
ये दुनिया की नादानी
दिलों को जोड़ती है

है कोई मीरा कहीं पे
है कोई राधा कहीं पे
तो कोई तुलसी के दल सी
प्रभु को ओढ़ती है

कभी हम थे बेगाने
तो थे हम भी सयाने
है आज दिल जो लगाया
आत्मा झकझोड़ती है

6 दिसम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Saturday, December 5, 2015

हर आदमी अपनी ज़िंदगी जीता है

हर आदमी अपनी ज़िंदगी जीता है
हर क्षण, हर पल, हर हाल में जीता है

हर आदमी अपनी ज़िंदगी जीता है
जो हार जाता है, वो जाता है
जो नहीं हारा, वो जीता है

जब तक न हो कोई हार
पूजा नहीं होती
सिर्फ़ नहलाने से
पूजा नहीं होती

जब तक न हो कोई हार
पूजा नहीं होती
जीत के नशे में 
पूजा नहीं होती

रोज़ा रोज़ा रखे
और फ़रीदा उपवास
ऐसी बातें 
रोज़ाना नहीं होतीं

चलो चलें 
किसी प्यासे को 
पानी पिला आएँ 
ऐसी बातें 
ए-सी में नहीं होतीं

सैलानी हो
और सैलाना से हो
ऐसी बातें 
तर्क संगत नहीं होतीं

अगर कोई बंदा
गाना न गाए
तो वो बेगाना नहीं होता
हर शास्त्र 
जो पाकिस्तान से आए
पाक-शास्त्र नहीं होता

कैसे कह दूँ कि 
तुम हो मेरी
जबकि तुम्हारा नाम सीता है
तुम वो उपवन हो
जिसे राम ने ही हर हर युग में सींचा है

कैसे कह दूँ कि 
तुम हो मेरी
जबकि तुम्हारा नाम कुछ और है
प्रेम है, प्यार है
पर मेरी कोई और है

न बुद्ध थे बुद्धू 
न राम ने सीया
यह है भाषा की सीमा
हर हस्ती परिभाषित नहीं होती

(सैलानी = जो सैलाना से हो; घुमक्कड़ी 
सैलाना = मध्य प्रदेश के रतलाम जिले की तहसील 
कहा जाता है कि सैलाना वाले सैलाना छोड़कर कहीं और नहीं जाते। 

यह रचना पढ़ते हुए पाठक ध्यान रखें कि मेरी पश्चिमी देशों में लोकप्रिय नाम भी है। )

5 दिसम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827







Saturday, November 28, 2015

नरेन्द्र नरेश हैं, विवेकानन्द नहीं


साधनों से साधना होती नहीं है
वाहनों से वाह-वाह होती नहीं है
ग्रहों का ग्रहण होता नहीं है
फिर क्यूँ हम-आप परेशान
कि क्यूँ भारत प्रभारत होता नहीं है?

ससुर सुर में गाते नहीं हैं
कम्बल में कम बल होता नहीं है
दीपक से खाना पकता नहीं है
फिर क्यूँ हम-आप परेशान
कि जो बकता है बंदा वो वक्ता नहीं है?

साहस भी सहसा होता नहीं है
फल भी रातोंरात पकता नहीं है
क्रिसमस भी हर माह आता नहीं है
फिर क्यूँ हम-आप परेशान
कि अच्छे दिन दो साल में आए नहीं हैं?

अंत में निष्कर्ष यही कि
जब भी हम-आप हों परेशान
बस यही सोचें कि
नरेन्द्र नरेश हैं, विवेकानन्द नहीं

प्रभारत = प्रभा में डूबा हुआ, प्रकाश से ओतप्रोत 

28 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Thursday, November 19, 2015

तुम इतना जो बड़बड़ा रहे हो


तुम इतना जो बड़बड़ा रहे हो
क्या विफलता है जो छुपा रहे हो?

बिहार में हार, वेम्ब्ली में भीड़
किस देश के हो, कहाँ छा रहे हो?

बाहर हो जाओगे, बाहर जाते-जाते
क्या ख़ाक सरकार चला रहे हो

बन जाएँगे बेड़ा गर्क के ये कारण
बार-बार जो जुमले देते जा रहे हो

आश्वासनों का खेल है राजनीति
आश्वासनों से मात खा रहे हो

(कैफ़ी आज़मी से क्षमायाचना सहित)
19 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827


Saturday, November 14, 2015

दीवाली किसलिए?


दीवाली की
साज-सजावट
साफ़-सफ़ाई 
जगमगाहट
किसलिए थी?
किसके लिए थी?

राम के अयोध्या आने की ख़ुशी में?
या लक्ष्मी के घर आने की संभावना में?

आनेवाला तो
कब का आ भी चुका
और जा भी चुका

रीझाया तो उसे ही जाता है
जो आनेवाला है

लेकिन
लक्ष्मीजी भी इन दिनों घर ही कहाँ आतीं हैं
सीधे बैंक चली जातीं हैं
और वहीं 
इस खाते से उस खाते में
इधर-उधर होती रहतीं हैं

देखनी हो तो
मोबाईल पर बिट्स और बाईट्स के समन्दर में ही
देखी जा सकती हैं

सच तो यह है कि
आदमी लाख मोबाईल हो जाए
शाम को लौट कर घर ही आता है
आदमी चाहे कितना ही बड़ा हो जाए
अभी भी अंधेरों से डरता है
जब भी दीपक जलता है
उसकी लौ से आकर्षित होता है

दीपक प्रज्वलित होते ही
मन प्रफुल्लित होता है
पथ प्रकाशित होता है

14 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Tuesday, November 10, 2015

खील खिलाना अलग है


खील खिलाना अलग है
खिलखिलाना अलग है
खील खिलाना है दीवाली का अनिवार्य अंग
मुस्कुराना मानवता का मज़हब है

मुस्कुराहट है
तो मोहब्बत है
मोहब्बत है
तो हम है

मोहब्बत यक़ीं है
मोहब्बत ज़बाँ है
वादा करो
तो निभाना अवश्य
यह कहती आशिक की धड़कन है

मोहब्बत जवाँ है
मुसल्सल ज़मज़मा है
जिसका अक्स हो रक़्स में
ऐसे इश्क़ में अश्क़ ही कहाँ है

मुस्कुराहट जहाँ है
सभ्यता वहाँ है
दूध और घी की बहती नदियाँ वहाँ है
सजदे में झुकता सबका जबीं वहाँ है

खील खिलाना अलग है
खिलखिलाना अलग है

खील = भुना हुआ चावल; मुरमुरा, जिसे दीवाली के दिन हाथी-घोड़े जैसे दिखनेवाले बताशों के साथ खाया जाता है
ज़बाँ = ज़ुबान, वचन
मुसल्सल ज़मज़मा = uninterrupted music
अक्स = reflection
रक़्स = नृत्य 
अश्क़ = आँसू 
जबीं = forehead 

10 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

खील खिलाना अलग है


खील खिलाना अलग है
खिलखिलाना अलग है
खील खिलाना है दीवाली का अनिवार्य अंग
मुस्कुराना मानवता का मज़हब है

मुस्कुराहट है
तो मोहब्बत है
मोहब्बत है
तो हम है

मोहब्बत यक़ीं है
मोहब्बत ज़बाँ है
वादा करो
तो निभाना अवश्य
यह कहती आशिक की धड़कन है

मोहब्बत जवाँ है
मुसल्सल ज़मज़मा है
जिसका अक्स हो रक़्स में
ऐसे इश्क़ में अश्क़ ही कहाँ है

मुस्कुराहट जहाँ है
सभ्यता वहाँ है
दूध और घी की बहती नदियाँ वहाँ है
सजदे में झुकता सबका जबीं वहाँ है

खील खिलाना अलग है
खिलखिलाना अलग है

खील = भुना हुआ चावल; मुरमुरा, जिसे दीवाली के दिन हाथी-घोड़े जैसे दिखनेवाले बताशों के साथ खाया जाता है
ज़बाँ = ज़ुबान, वचन
मुसल्सल ज़मज़मा = uninterrupted music
अक्स = reflection
रक़्स = नृत्य 
अश्क़ = आँसू 
जबीं = forehead 

10 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Saturday, November 7, 2015

आज रात चाँद इक महफ़िल में छा गया


आज रात चाँद इक महफ़िल में छा गया
धुन तो नहीं थी कोई मगर गीत गा गया

रोशनी में रोशनी दिखती नहीं मगर
दीपक जलें अनेक तो रामराज्य आ गया

अपने ही हाथों में है अपनी ही आबरू
कह-कह के और भी कई कहकहे लगा गया

जानते हो, बूझते हो, फिर सवाल क्यूँ 
कौन था वो कौन था जो मुझको भा गया

हम सब लगे हैं खोज में अपने ही चाँद की
हम सब की राह में कोई अलख जगा गया

अलख जगाना = to rise oneself and arouse others in the name of invisible 

7 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Sunday, November 1, 2015

मिले न फूल तो पत्तों की फ़ोटो खींच ली


मिले न फूल तो पत्तों की फ़ोटो खींच ली
कुछ इस तरह से मैंने एल्बम भर ली

समस्याएँ अनेक हैं हमारी दुनिया में 
प्रभु का नाम लिया और आँखें बंद कर ली

मैं कौन हूँ और किसे मैं क्या शिनाख़्त करूँ 
मुझे तो जो भी मिला उससे दोस्ती कर ली

चले भी आओ कि हम साथ-साथ चलें
कहाँ है वो जो कहे मुझसे बातें पगली

हुआ हूँ आज मैं अपने आप से ऐसे मुख़ातिब 
कि मैं हूँ ख़ुद ही मगर लगूँ हमशकली

शिनाख्त = to identify 
मुख़ातिब = किसी की ओर मुँह करके बातें करने वाला; अभिमुख
(इंदीवर से क्षमायाचना सहित)
1 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Wednesday, October 28, 2015

ग़ज़ब फेंकते हो तुम


ग़ज़ब फेंकते हो तुम
कहाँ शुरू कहाँ खतम
दलीलें भी अजीब सी
न तुम समझ सके न हम
मुबारकें तुम्हें के तुम
मंच के नूर हो गए
माईक के इतने पास हो
कि सबसे दूर हो गए
किसीका वोट लेके तुम
वादे भूल जाओगे
जब-जब बाज़ार जाएँगे
तुम हमको याद आओगे
ये बीजेपी के साथ क्यूँ 
भूत जुड़ा हिन्दूत्व का?
भारत के विकास में 
महत्व क्या हिन्दूत्व का?

(शैलेन्द्र से क्षमायाचना सहित)
28 अक्टूबर 2015
सिएटल । 425-445-0827

Wednesday, October 21, 2015

रावण मारा नहीं जाता है


पापा,
पिछले साल तो जलाया था
आज फिर क्यों?
क्या वो मरा नहीं?

कैसे समझाऊँ 
कि
रावण मारा नहीं जाता है
सिर्फ़ जलाए जाने का नाटक किया जाता है
ताकि रामलीला होती रहे
राम का गुणगान होता रहे
और
जनता
बाक़ी मुद्दे भूलकर
जय श्रीराम
जय श्रीराम
कहती रहे

राम के अस्तित्व के लिए रावण ज़रूरी है

21 अक्टूबर 2015
सिएटल । 425-445-0827

Monday, October 19, 2015

वादा फ़रामोश वादा न करे ऐसा नहीं होता


वादा फ़रामोश वादा न करे ऐसा नहीं होता
ये सियासत है, सियासत में क्या-क्या नहीं होता

हम पुरस्कार भी लौटाएँ तो हो जाते हैं बदनाम
वे क़त्ल भी करे तो चर्चा नहीं होता

हम होते, तुम होते तो ऐसा नहीं होता
जहाँ भी होता है झगड़ा, वहाँ हमसा नहीं होता

लेती है ज़िंदगी भी इम्तिहान कैसे-कैसे
सिलेबस भी वो जिसका अता-पता नहीं होता

मोहब्बत होती है और होती रहेगी
नफ़रत से नस्ल का गुज़ारा नहीं होता

वादा फ़रामोश = वादा तोड़ने वाला
सियासत = राजनीति
सिलेबस = syllabus 

19 अक्टूबर 2015
सिएटल | 513-341-6798



Saturday, October 17, 2015

पहेली 42


पहेली 42

रूठते नहीं हैं फिर भी मनाते हैं हम
तरह-तरह के पकवान खिलाते हैं हम
कोई मरता है तब भी
कोई जन्मता है तब भी
कोई हारता है तब भी
कोई जीतता है तब भी

सजते हैं, धजते हैं
फ़ेसबुक-व्हाट्सैप पे कट-पेस्ट करते हैं

दिमाग़ लगाओ, न मानो तुम हार
सही बताओगे तो पाओगे तुरंत यो हार
--------
कैसे हल करें? उदाहरण स्वरूप पुरानी पहेलियाँ और उनके हल देखें।

Thursday, October 15, 2015

पहेली 41




इसका नाम ले-ले कर जो बटोरते हैं धन
वे भी एक दिन पकड़ लेते हैं सर
कि वो उपर भी है और नीचे भी है
घूँघट में भी है और दिखे भी है 
पर नहीं हैं पर उड़े भी है
न खाए, न डायट करे
पर घटे-बढ़े भी है

जल्दी बतलाओ वरना पाओगे डंडा
मैं भी हूँ पक्का अपने वचन दा

---------------

कैसे हल करें? उदाहरण स्वरूप पुरानी पहेलियाँ और उनके हल देखें।

Thursday, October 8, 2015

संग भी इन दिनों सलामत नहीं


संग भी इन दिनों सलामत नहीं
ताज बने ऐसी हालत नहीं

विदेशियों पे करते हैं इतना भरोसा
कि देश में पनपती सदारत नहीं 

चिपके ओबामा और मार्क से ऐसे
मानो इनके बिना बढ़ेगा भारत नहीं

डॉलर शहद और मक्खी हैं हम
शहद चाटनेवाले देते शहादत नहीं

मरे कोई, किसी को जँचता नहीं
कहने की करते सब हिमाक़त नहीं

संग = पत्थर 
सदारत = नेतृत्व, leadership 
शहादत = शहीद होना
हिमाक़त = मूर्खतापूर्ण साहस

8 अक्टूबर 2015
सिएटल । 425-445-0827


Wednesday, October 7, 2015

अख़बार पढ़ कर क्या होगा?


अख़बार पढ़ कर क्या होगा?
वो गुज़रे हुए कल की बात करता है

स्कूल जाकर क्या होगा?
वो आनेवाला कल सुधारेगा

मैं योगी हूँ
मैं वर्तमान में जीता हूँ

जो बीत गया सो बीत गया
जो होगा सो होगा

अख़लाक़ को मरे नौ दिन हो गए हैं
और देश भी आज डूबने वाला नहीं है

तो फिर आज क्यों बेकार में परेशान होना?

जो कल की फ़िक्र करते हैं
हमेशा अस्वस्थ रहते हैं

लम्बी साँस लो
हवा इस नथुने से लो
और उस नथुने से बाहर निकालो

मैं वर्तमान में जीता हूँ
मैं मर्तबान में जीता हूँ

7 अक्टूबर 2015
सिएटल | 425-445-0827

शिकायत है नज़्म में नज़ाकत नहीं



शिकायत है नज़्म में नज़ाकत नहीं
ताक़त है लेकिन शराफ़त नहीं

लिखता हूँ जो दिल में उभरते हैं भाव
कविताओं के शिल्प में महारत नहीं

होगी पश्चिम में हज़ारों ही ऐब
दूध का धुला भी कोई भारत नहीं

मैं लेता हूँ जब भी किसी दूसरे का पक्ष
ये आदत है मेरी, अदावत नहीं

इबादत करूँ तो भी वो करते हैं शक़
कि संकट की इबादत इबादत नहीं

अदावत = दुश्मनी
इबादत = पूजा

7 अक्टूबर 2015
सिएटल । 425-445-0827


Wednesday, September 30, 2015

खम्भे के इस पार है हरियाली

खम्भे के इस पार है हरियाली

उस पार न जाने क्या होगा?
रंगों से भरे इस गुलशन को
रंगों से डर लगे तो क्या होगा?

सब साथ चले
सब साथ बढ़े 
कुछ छूट गए
कुछ छोड़ गए
जो साथ हैं
वे भी साथी नहीं
अब कौन किसी का क्या होगा?

खिलती थी कलियाँ उमंगों सी
गूँजते थे भँवरे मतवाले
बहती थी कल-कल धाराएँ 
चहकते थे पक्षी चौबारे
अब सोज़ नहीं, कोई साज़ नहीं
कवि की कोरी कल्पनाओं से क्या होगा?

पत्तों की सरसराहट होती है 
टहनियाँ भी चटकती हैं कहीं-कहीं
धूप भी रस्म-अदाई करती है
जो रहती थी आठ पहर यहीं-यहीं
कर्मों का यह कोई दोष नहीं
कर्मयोगी गुल सा कोई क्या होगा?

सृष्टि का यही एक नियम है
सृष्टा का खेल सारा है
जो बनता है, वो मिटता है
जो जन्मता है, वो मरता है
इसके आगे हर कोई हारा है
पहेलियाँ बूझने से क्या होगा?

30 सितम्बर 2015
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Wednesday, September 23, 2015

यह घड़ी अगर मैं बनाता और होता नाम अहमद


यह घड़ी अगर मैं बनाता और होता नाम अहमद    

घर बुलाते ओबामा मुझको और होते सारे गदगद        

 

होते सारे गदगद करती प्रेस ताता-थैया

जग में होता नाम मेरा और मिलते ऑफर बड़िया        

 

मिलते ऑफर बड़िया पर मेरा नाम रखा ऐसा छाँटकर

कि हिंदुस्तान से भी भागा डरकर, खा गया वहाँ आरक्षण

 

यहाँ आकर भी नाम बदला, बदला रहन-सहन भी

कब तक बाबा रामदेव की सुनता, जिम में उठाए वजन भी

 

धोबी के कुत्ते जैसी हालत, न रहा इधर का न उधर का

मेरा भी क्या दोष है इसमे, मैंने तो चाही मधुरता

 

मेल्टिंग पॉट में मेल्ट होकर मिटा डाली विविधता

बाकी जो कुछ बचे-खुचे हैं उन्हें हर कोई है पूजता

 

कवि महोदय, कथा-वाचक, ज्योतिष और वैद्य        

नाटकवाले, गायक, मेकअप मैडम सब के सब हैं सेट

 

यह घड़ी अगर मैं बनाता और होता नाम अहमद        

घर बुलाते ओबामा मुझको और सारे होते गदगद

 

23 सितम्बर 2015

सिएटल | 425-445-0827

Sunday, September 20, 2015

जीत गए तो डरना क्या

जीत गए तो डरना क्या
जब जीत गए तो डरना क्या
चुनाव जीता है कोई नौकरी नहीं ली
खट-खट के काम करना क्या

फ़र्ज़ हमारा वादे करना
जनता का काम उन्हें पूरा करना
जब जनता ही नहीं काम करेंगी
तो नेताओं को निलम्बित करना क्या

पाँच साल चलेगा हमारा शासन
पाँच साल बिछेगा हमारा आसन
उसके बाद का सोच-सोच के
मन को आशंका से भरना क्या

जब-जब मन होगा दौरा करेंगे
कभी यहाँ तो कभी वहाँ करेंगे
राजपाट में हैं सैंकड़ों सुविधा
बंगला-गाड़ी-झरना क्या

(शकील बदायूनी से क्षमायाचना सहित)

Thursday, September 3, 2015

अब कहाँ किसमे इतना सब्र है

अब कहाँ किसमे इतना सब्र है

कि दो दिन इंतज़ार करे

और गर्म राख में हाथ खराब करे

 

बस बटन दबाया

और एक ठंडा कलश हाथ आ जाता है

 

और आप अमेज़ॉन प्राईम के मेम्बर हैं 

तो फिर वो दिन दूर नहीं

जब डेश के बटन को दबाते ही

हज़ारों मील दूर पड़ा पार्थिव शरीर

मिनटों में राख हो जाएगा


न टिकट खरीदने की झंझट

न प्लेन में चढ़ने के लिए एक लम्बी उबाउ कतार

न एम्स्टर्डम के सुरक्षाकर्मी को रटे-रटाए सवालों के जवाब देना

न आधी रात घर पहुँचना

और बढ़ती गर्मी और घटते परिवार

के बीच मन ही मन यह समझ आना कि

अब तुम बड़े हो गए हो

घर आए छोटे बच्चे नहीं हो

कि मन-माफ़िक़ खाना बनेगा

पिकनिक की बातें होगी

गोलगप्पे खाए जाएगे

 

और हाँ

जल्दी ही एक ड्रोन सर्विस भी तैयार हो जाएगी

ताकि गंगा भी न जाना पड़े

स्मार्टफोन पर ही बटन दबाया

और उधर अस्थियाँ विसर्जित

 

पुनश्च:

 

जो पढ़े-लिखे लोग हैं

उन्हें पर्यावरण की बड़ी चिंता है

मुझ कम पढ़े व्यक्ति की बातों में आकर

आप उनका अनादर न करें

 

जितना भी वे कर सकते हैं

कर रहे हैं

एक लाश न जलाकर

 

वैसी ही उनपर

बी-एम-डबल्यू और मर्सीडीज़ चलाने का

बड़ा बोझ है

 

सितम्बर 2015

सिएटल । 425-445-0827

Wednesday, September 2, 2015

चमचों का भक्तों का, सबका कहना है


चमचों का, भक्तों का, सबका कहना है
नेक हज़ारों में मोदी अच्छा है
सॉरी, मगर, मुझे सच कहना है

ये न जाना मोदी ने मैं हूँ क्यूँ उदास
मेरी प्यासी आँखों में सुधार की है प्यास
कर ले कुछ काम ज़रा, कब तक बकना है?

सोनिया-मोदी दोनों हैं इक डाली के फूल
वो न लाई 'ब्लैक मनी', ये भी गए भूल
नीयतें हैं खोटी और किसको फँसना है?

किसी खूंखार शेर की तरह मुँह फुलाए आप
न्यू यार्क, सिडनी, टोरोंटो में गप्पें हांके आप
योगा की आड़ में कब तक ठगना है?

जबसे कुर्ते छोड़े और पहने सूट-बूट
तबसे विश्वास खोया और सपने गए टूट
पी-एम का काम क्या सजना-सँवरना है?

भारत के लोगों से यूँ डरते नहीं हैं
ऐसे बचके सच से गुज़रते नहीं हैं
कुर्सी की है चाह तो सच भी सुनना है

2 सितम्बर 2015
सिएटल । 425-445-0827
(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)