साधनों से साधना होती नहीं है
वाहनों से वाह-वाह होती नहीं है
ग्रहों का ग्रहण होता नहीं है
फिर क्यूँ हम-आप परेशान
कि क्यूँ भारत प्रभारत होता नहीं है?
ससुर सुर में गाते नहीं हैं
कम्बल में कम बल होता नहीं है
दीपक से खाना पकता नहीं है
फिर क्यूँ हम-आप परेशान
कि जो बकता है बंदा वो वक्ता नहीं है?
साहस भी सहसा होता नहीं है
फल भी रातोंरात पकता नहीं है
क्रिसमस भी हर माह आता नहीं है
फिर क्यूँ हम-आप परेशान
कि अच्छे दिन दो साल में आए नहीं हैं?
अंत में निष्कर्ष यही कि
जब भी हम-आप हों परेशान
बस यही सोचें कि
नरेन्द्र नरेश हैं, विवेकानन्द नहीं
प्रभारत = प्रभा में डूबा हुआ, प्रकाश से ओतप्रोत
28 नवम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827
1 comments:
कविता में बहुत सारे word plays हैं -
साधनों से साधना, वाहनों से वाह-वाह, ग्रहों का ग्रहण, भारत प्रभारत, ससुर सुर, कम्बल में कम बल, साहस भी सहसा - और सबका use अच्छा है। कविता के end में twist है जिसे politics जाने बिना पूरी तरह समझना कठिन है। पर एक twist में अपनी view बताना interesting है। प्रभारत नया शब्द है - उसका meaning देना helpful था।
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