Wednesday, June 30, 2021

तू चाँद है

तू और तेरी खूबसूरत अदाएँ 

सतातीं हैं मुझे 


सोता हूँ 

तो सोने न दे

जागूँ 

तो जागने न दे

कभी इधर

तो कभी उधर

भटकाती हैं मुझे 

सर्द-गर्म मौसम की तरह

तड़पातीं हैं मुझे 

न ए-सी है

न हीटर है 

तू ही बाहर-भीतर है

गिरता-उठता है 

मेरे प्यार का समंदर

तू चाँद है

मैं सागर की लहर भर


राहुल उपाध्याय । 30 जून 2021 । सिएटल 


Sunday, June 27, 2021

पता होता

पता होता 

कि तुम मिलोगी

तो

वही शर्ट पहनता 

जो तुम्हें पसन्द है 

तीन दिन 

खाना नहीं खाता

ताकि पेट निकला न होता


वही सब करता 

जिनसे तुम्हें लगता 

कि मैं उसी परिपाटी पर

चल रहा हूँ 

जो तुमने बनाई थी


तुम मिलकर भी न मिली


तुम्हारी चमक-दमक ही इतनी है 

कि जुगनू तुम्हें क्या समझ आए


मैं हमेशा की तरह

ख़ाली हाथ लौटा

ऐसे जैसे

कोई जग छोड़े 

अपनी अंत्येष्टि के बाद


राहुल उपाध्याय । 27 जून 2021 । सिएटल 





इतवारी पहेली: 2021/06/27

इतवारी पहेली:


जो करते हैं बात नोक पर ### #

कौन है जो रहना चाहेगा ## ## #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 4 जुलाई को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 27 जून 2021 । सिएटल


Thursday, June 24, 2021

ये छत न हो

ये छत न हो

शहर न हो

तो मुझे तेरी

ख़बर न हो


कि तुम जगी रात भर

कि दिन में हुई रात थी

कि तुम खेली आग से

कि तुम ही ख़ुद आग थी

कि पलके मूँदीं जान के

कि प्यार से निकली आह थी

कि गिरा-उठा प्रेम फीवर

कि धड़कनें हुईं फ़ास्ट थीं

कि ज़ुल्फ़ गिरी शाख़ से

कि शाख़ ही बदहवास थी

वो कौन था, वो ख़ुशनसीब 

जिसके तुम साथ थी


ये छत न हो

शहर न हो

तो मुझे तेरी

ख़बर न हो


जीने को 

जी रहे 

जीने की

वजह न हो


राहुल उपाध्याय । 24 जून 2021 । सिएटल 





मुझे रात-दिन की ख़ुशी देनेवाले

https://youtu.be/blHz6pGemVk


मुझे रात-दिन की ख़ुशी देने वाले 

कभी दिल न तोड़ा ख़ुशी देने वाले 


कुरबत है तुझसे, तुझसे दया है

बिन तेरे मेरा जहाँ और क्या है

मेरे दिल की दुनिया है तेरे हवाले


क्यूँ आँखों में आँसू लब पे है शिकवा

तू जब है दाता मुझे दुःख किस का

मुझे जान नादान गले से लगा ले


भरोसा है मुझको रहमत पे तेरी

करता हूँ शक मैं नीयत पे मेरी

तू ही थाम तू ही मुझको बचा ले


राहुल उपाध्याय । 23 मई 2021 । सिएटल 





Tuesday, June 22, 2021

न पंखे थे, न पंख

तब ज़िन्दगी ऐसी नहीं थी

कि ए-सी होता 

बिजली ही नहीं थी 

कि ऐसी सम्भावनाएँ बीज लेतीं

न पंखे थे

न पंख 

कि कल्पनाएँ उड़ान भरतीं 


जो देखा-सुना बहुत सीमित था

औरतें तो नगण्य थी ही

पुरूष प्रधान समाज में भी 

पुरूष के उत्थान का

स्थान नहीं था


दादा 

पिता को डाँटें-पीटें

पिता 

बेटे को


कोई कुछ करना भी चाहे

तो ताने सुनो

अपने आप को बहुत होशियार समझते हो?

बड़ों के सामने ज़बान चलाते हो?

भगवान का दिया क्या कुछ नहीं हमारे पास

इनसे तुम ख़ुश नहीं 

तो सुखी कभी रह नहीं पाओगे


गाँव छूटे

साँचे टूटे

शहर आए

भँवर में आए

आटे-दाल के

भाव समझ में आए

धीरे-धीरे 

होश में आए

कभी डूबे

कभी इतराए

हार-जीत के

सम्पर्क में आए


सिनेमा देखा

किताबें बांची 

संगीत सुना

नाटक देखा 

नृत्य समझा

यौवन देखा 

हुस्न जाना

पर्वत घूमें 

समन्दर नापा

रंग देखे

इश्तहार देखे

समझाने वाले

समझदार देखे

सूरज-चाँद नज़दीक आए

दूर थे जो पास में आए


किसी तरह का बन्धन नहीं था

रोकने-टोकने वाला कोई कहीं न था


उड़ती पतंग को सूत्रधार चाहिए

बुलंद इमारत को मज़बूत आधार चाहिए 


उड़ना चाहे लाख पसन्द हो

ज़मीं पे न उतरे तो ख़ाक उड़े


इसी चढ़ाव-उतार का

नाम है जीवन 


गाँव न होता तो

शहर की चाह न होती

दबाव न होता तो 

उत्थान का प्रयास न होता 


राहुल उपाध्याय । 22 जून 2021 । सिएटल 














Sunday, June 20, 2021

इतवारी पहेली: 2021/06/20


इतवारी पहेली:


पैंतीस साल पहले था मैं शहर #### #

तब मस्तियाँ थीं पहले, था ## ## #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 20 जून को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 20 जून 2021 । सिएटल















Saturday, June 19, 2021

तुमने चाहा

तुमने चाहा

हम सितारों के नीचे एक हों

हम हुए


तुमने चाहा

हम फ़िज़ाओं में घुल जाए

हम घुल गए


तुमने चाहा

हम दिन-दहाड़े चाट खाए 

हमने खाई


तुमने चाहा

हम बारीश में भीगें 

हम भीगे


अब?

अब क्या?


अब क्या

न भूख है

न प्यास है

न चाह है?


नहीं 

सब पूर्ववत है 

बस भय भी साथ है


जो पा लिया

उसे खोने का डर है 


जब कुछ भी न हो

कुछ भी कर गुजरने को मन करता है 

जब सब कुछ हो

डर लगा रहता है


मुझे ख़ुशी है कि 

तुम सुखी हो

दुख भी कि

सूखी हो


हवा न दो तो 

जवाँ आग 

राख होती है 


राहुल उपाध्याय । 19 जून 2021 । सिएटल 







Friday, June 18, 2021

कविताएँ जो लिखी जा चुकी हैं

कविताएँ 

जो लिखी जा चुकी हैं 

सुनाई जा चुकी हैं 

छप चुकी हैं 

पेन्सिल से नहीं लिखी गईं 

कि इरेज़र से मिटा दूँ 

ब्लॉग नहीं है

कि डीलिट कर दूँ 

काग़ज़ नहीं है कि

फाड़ दूँ


मेरी ज़िन्दगी हैं


और सही भी है 

कल की अच्छाई

आज पर क्यूँ थोपूँ 

आज की बुराई 

कल पर क्यूँ मढ़ूँ?


तुम

कल अच्छी थी तो थी

आज नहीं तो नहीं 


मैं भी वो कहाँ 

जो कल था


कल एक का था

आज दस का हूँ 

कल कार में था

आज बस में हूँ 

पर किसी के नहीं 

बस में हूँ 


राहुल उपाध्याय । 18 जून 2021 । सिएटल 




Wednesday, June 16, 2021

वो अकेली हो गई

मैं तीन घंटे ग़ायब क्या हुआ

वो अकेली हो गई 

इन्टरनेट

व्हाट्सैप

इन्स्टाग्राम

यूट्यूब 

सब कुछ होते हुए भी

अकेली हो गई 


कितनी ख़ुशी की बात है 

कि कोई मेरी याद में

इतना दुखी हो जाए

कि

मोटी-मोटी आँखों में

आँसू भर ले

मोती जैसे दाँत 

गिरवी रख दे

मेरे होने न होने से

उसे फ़र्क़ पड़े


मेरा तो आज जैसे

दिन ही बन गया


दुखी हुई वो तो

दुखी मैं भी हूँ 

पर रिश्ते की मज़बूती का

जश्न भी तो है


चाहता हूँ कि

ऐसे दिन और आए

बिन आँसू लाए

मुझे वो मेरी है बता जाए


राहुल उपाध्याय । 16 जून 2021 । सिएटल 





Tuesday, June 15, 2021

हाथ में विश्वास जिसे है जीत उसी की होनी है

https://youtu.be/GyMdDVL_v8o


हाथ में विश्वास 

जिसे है जीत उसी की होनी है

मान ले जो हार 

उसकी हार ही तो होनी है 


हम अकेले हैं 

बिलकुल अकेले हैं, 

तो भी क्या ग़म है

साथ में अपने

हैं हाथ दो अपने

तो फिर क्या ग़म है

हो ना तू निराश, 

जगत में जीत तेरी ही होनी है 


देख भँवर में 

जो नाव फँसी है 

तू पतवार थाम ले

ज्ञान से तेरे

कर दूर अंधेरे

तू मोर्चा थाम ले

हो जा तू तैयार

हो जा तू तैयार

समर में जीत तेरी ही होनी है 


तुने साँस की दौलत

जो पाई है 

उसे सम्भाले रखना

आज नहीं तो क्या

कल तो पाएगा 

तू उसकी राह तकना

ठान ले इक बार

फिर ये जीत तेरी ही होनी है 


राहुल उपाध्याय । 14 जून 2021 । सिएटल 




Sunday, June 13, 2021

इतवारी पहेली: 2021/06/13


इतवारी पहेली:


कुछ बात ही ऐसी की ## #

कि भारी पड़ गए रिश्ते ###


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 20 जून को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 13 जून 2021 । सिएटल















Saturday, June 12, 2021

स्टूडेंट ड्राइवर

सारी सद्भावनाएँ हवा हो जाती हैं

जब पाता हूँ बी-एम-डबल्यू के पीछे 

स्टूडेंट ड्राइवर लिखा


कि कोई कैसे बिना पढ़े-लिखे

इतना सब कुछ पा जाता है 


मन जल-भुन कर राख हो जाता है 

धूँ-धूँ कर के धुआँ उगलता है


कहाँ जाकर अपना सर फोड़ूँ?

कहाँ जाकर नारे लगाऊँ?

किसे दोषी ठहराऊँ?


ज्ञान मुझमें भी है 

(बिन गीता पढ़े)

कि परिश्रम करो

फल मिलेगा 


इस ज्ञान का क्या करूँ?

अचार डालूँ?

जबकि दिख रही हैं मुझे चारों ओर

विषमताएँ


क्या रिक्शा वाला मेहनत नहीं कर रहा?

क्या कचरा ढोने वाला मेहनत नहीं कर रहा?


अब कोई मुझे लेक्चर मत देना

(उसे तो किसी ने नहीं दिया)

कि पूरी गीता पढ़ो 

(उसने तो नहीं पढ़ी)

तब समझोगे


क्योंकि मुझे समझना नहीं है


मुझे भी वैसी ही

चमचमाती हुई

नई की नई 

बी-एम-डबल्यू चाहिए 


राहुल उपाध्याय । 12 जून 2021 । सिएटल