Friday, August 9, 2019

जितना मंजन किया

जितना मंजन किया
उतना वंदन किया

फिर भी दाँत झड़े
दु:  घटे
डॉक्टर ढूँढे 
पण्डित ढूँढे 
सबने घुटने
टेक दिए

कहने लगे
ढलती उम्र का इलाज नहीं
जीवन के चढ़ाव-उतार से निजात नहीं

फिर क्यूँ माँजूँ?
नाम भजूँ?
जिसका कोई स्थायी स्वभाव नहीं?

क्योंकि माँजे बिना मुस्कान नहीं
गुणगान बिना हर्ष--उल्लास नहीं

राहुल उपाध्याय  9 अगस्त 2019  सिएटल

Sunday, August 4, 2019

यार नहीं होते तो



नैया है सबकीसब हैं खिवैया
ज़िम्मेदारी सबकीसब हैं मुखिया
यार नहीं होते तो पतवार नहीं होती
पतवार नहीं होती तो मँझधार ले डूबोते

श्रम से भरा है जीवनजीवन इक बगिया 
काट-छाँट खाद डालोमहके तब बगिया
यार नहीं होते तो इतवार नहीं होते
इतवार नहीं होते तो थक-हार गए होते

यार की है यारी न्यारीइसका  जोड़ कोई
संग-संग सदा चले जाए मोड़ कोई
यार नहीं होते तो संवाद नहीं होते
संवाद नहीं होते तो बेज़ार हो के रोते 

यार नहीं होते तो ...

राहुल उपाध्याय  4 अगस्त 2019  सिएटल