Thursday, April 30, 2020

चल मेरे भाई

ब्रेकिंग न्यूज़ ब्रेक भी कर सकती है
यह आज समझ आया

वैसे ही इरफ़ान के चक्कर में
रात को ठीक से सोया नहीं
फिर भतीजे को पुत्ररत्न की प्राप्ति हो गई
बेटे का चौबीसवाँ जन्मदिन भी था
और एक सहपाठी का भी
सो सब गड्डमड्ड हो गया
कब रात ख़त्म हुई
कब दिन शुरू 
और फिर शाम

लगा जैसे किसी लम्बी फिल्म का
हिस्सा बन गया हूँ
जो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही

और यह ख़बर आ गई
सुना था बड़ी मौतें तीन के झुंड में आती है
लेकिन क्या सारी सुनी बातें सच होती हैं?

कहते हैं फ़िल्मों में 
भाई-भतीजावाद बहुत है
पिता भी कलाकार 
बेटा भी
दादा भी
भाई भी 
चाचा भी

लेकिन प्रशंसक भाई भतीजा नहीं देखते हैं
जो पसंद आता है वही देखते हैं 

बॉबी से लेकर क़र्ज़ तक 
कभी-कभी से लेकर लैला-मजनू तक
तुम्हें हाथों-हाथ लिया

चल मेरे भाई
तेरे हाथ जोड़ता हूँ ...

राहुल उपाध्याय । 30 अप्रैल 2020 । सिएटल



Wednesday, April 29, 2020

ऐसा भी कहीं होता है क्या?

मैं सोने जा रहा था
और तुम सो गए चिरनिद्रा में
मेरी नींद उड़ा कर
ऐसा भी कहीं होता है क्या?

अभी दो-चार दिन पहले
तुम्हारी माँ गुज़री
तुम्हारा कोई अता-पता न था
मेरा माथा ठनका था तभी
ऐसा भी कहीं होता है क्या?

और तुम्हारी फिल्म भी तो अभी आई थी
तुम भी हाल ही में ठीक होकर आए थे
कोविड के होते हुए 
कोविड ने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा
फिर भी तुम चल दिए
ऐसा भी कहीं होता है क्या?

राहुल उपाध्याय । 29 अप्रैल 2020 । सिएटल

Wednesday, April 22, 2020

तेल का दाम शून्य से कम

तेल का दाम
शून्य से कम?
कई लोग
इसे समझने में
असमर्थ हैं

लेकिन हिन्दी का कवि
इस अर्थव्यवस्था से
भलीभाँति परिचित है

अपने ही पैसों से किताब छपवाना
अपने ही ख़र्चे पर लोकार्पण 
एक नहीं 
कई बार करवाना
चाय पिलाना
समोसा खिलाना
फिर भेंट में हस्ताक्षरित प्रति देना
जो कि पढ़ी तो कभी जाती नहीं है
लेकिन नज़र भी कभी नहीं आती है

यह सब करना
उसे अत्यंत सुख देता है
मानो कविता छपी नहीं 
तो वह सड़ जाएगी

तेल वालों की भी वही दुविधा है
तेल निकलता न रहा
तो मशीन में जंग लग जाएगी
पूरा धंधा चौपट हो जाएगा

सामने वाले के काम न आए
तो वह क्यूँ ले?
बस ऐसे ही
लेने के देने पड़ जाते हैं

कविता लिख दी
और भेजे जा रहे हैं
एक ढीठ की तरह
चाहे सामने वाला
कितना ही मना क्यों न करे

राहुल उपाध्याय । 22 अप्रैल 2020 । सिएटल

Tuesday, April 21, 2020

जो उसने कहा नहीं

वह एक के बाद एक
प्रेम गीत गाए जा रही थी
मैं समझा वो इश्क़ का इज़हार कर रही है
मुझसे प्रेम का इकरार कर रही है
मुझे क्या पता कि 
वह तो अंताक्षरी खेल रही थी

किसी ने कहा उसने आठ दिन से
अन्न छोड़ रखा है
मैंने सोचा वाह यह तो विरह की वेदना की
पराकाष्ठा है
मुझे क्या पता कि 
वह यह सब स्वस्थ रहने के लिए कर रही है

उसने दस दिन से
अपना डी-पी नहीं बदला
मैंने सोचा ब्रेकअप के बाद 
अब वह उदास है
दुनिया से जी उचट गया है
मुझे क्या पता कि
उसका नेट नहीं चल रहा है

यही दिक्कत है
आशिक़ के साथ
जो उसने कहा नहीं
वह वही सुन लेता है

राहुल उपाध्याय । 21 अप्रैल 2020 । सिएटल

Monday, April 20, 2020

इस उम्र में और ब्रेकअप??

इस उम्र में और ब्रेकअप??
यार तुम बहुत ख़ुशक़िस्मत हो

अब कौन इन्हें समझाए कि
उम्र के साथ दिल कमजोर हो जाता है
और ब्रेकअप से पैकअप होते देर नहीं लगती
ब्लड प्रेशर के घटने-बढ़ने का डर लगा रहता है
साँस फूल जाती है
हवा खिसक जाती है
पसीने छूट जाते हैं
होंठ सूखने लगते हैं

माना कि
कोविड जानलेवा बीमारी है
और ऐसिम्प्टोमेटिक है
लेकिन ब्रेकअप तो और भी भयंकर है
इसका तो
कोई टेस्ट भी नहीं है

अच्छे-भले बात कर रहे थे
और न जाने किस बात पर 
पासा पलट गया

कल ही जनम जनम की
योजनाएँ बना रहे थे
यहाँ जाएँगे
वहाँ जाएँगे 
ये देखेंगे
वो देखेंगे
इससे मिलेंगे 
उससे मिलेंगे

सब का सब धरा रह गया
और इसमें उलझ गए कि
तुम ऐसी हो
तुम ऐसे हो
तुम नहीं समझोगे
तुम्हें कभी समझ नहीं आएगी

जो परी थी
परी नहीं लगती
जो नूर था
वो क्रूर हो गया
दधकता अंगार हो गया

बाय कहने तक की नौबत नहीं आई
और जुदा हो गए

अब इस उम्र में कोई कितने
ट्रान्स्पलांट करवाए
कितने रिप्लेसमेन्ट करवाए

एक अंतराल के बाद
शायद फिर एक हो जाए
कभी किसी
आईस क्रीम पर
या कॉफ़ी पर
फिर से परी और नूर मिल जाए

राहुल उपाध्याय । 20 अप्रैल 2020 । सिएटल

Sunday, April 19, 2020

मेरी चौथी कक्षा तक पढ़ीं माँ

मेरी चौथी कक्षा तक पढ़ीं माँ 
आज अमेरिका की ग्रीनकार्ड धारक हैं
यह सब संतोषी माता के व्रत का प्रताप है

आज मेरा गर्लफ़्रेंड से ब्रेकअप हो गया
कल शनिवार को गाड़ी में तेल डलवाया था
यह उसका परिणाम है

यानि सुखी जीवन के लिए
शुक्रवार को खटाई खाना बन्द करो
शनि को पेट्रोल की दुकान
गुरू को नाई की

जो इन नियमों का उल्लंघन करेंगे
वे भुगतेंगे
कोरोना उन्हें ढूँढ निकालेगा
वे बचकर नहीं जा सकते
वह अदृश्य है
सब को परख रहा है
कर्मों के पलड़े में तौल रहा है
और तुम मूर्खों की तरह टेस्ट पर टेस्ट
किए जा रहे हो

वे
जिन्होंने गाय पाली हैं
जिन्होंने देसी घी खाया है
ज्योतिर्लिंग के सामने शीश नवाया है
वे सुरक्षित हैं

हम ज्ञान-विज्ञान-अज्ञान के उस छोर पर हैं
जहाँ हर बात ग़ौर करने लायक़ है
न कोई ग़लत है
न कोई सही है
सब का सब गड्डमड्ड है

अभी भी नासे रोग हरे सब पीरा के नारे लगते हैं
अभी भी निरर्थक दीप जलते हैं

अभी भी वही सब होता है 
जो हज़ारों साल पहले होता था

कहते हैं 
हवा साफ़ है
मृत्यु दर गिर गई है
परिवार ख़ुश है
लोग दान पुण्य कर रहे हैं
सतयुग आ गया है

यह कैसा सतयुग?
जहाँ ग़रीब दान पर आश्रित है?
जहाँ महामारी का आतंक है?
जहाँ हर घर एक जैल है?

क्यों नहीं खोल देते
मन्दिर-मस्जिद-गिरजे
क्या पता
दवा नहीं तो दुआ ही काम आ जाए

क्या सारी दुनिया
नास्तिक हो गई?

क्या किसी ने भी 
एक भी नेता ऐसा नहीं चुना
जिसे धर्म संस्थानों पर विश्वास हो?

राहुल उपाध्याय । 19 अप्रैल 2020 । सिएटल

Thursday, April 16, 2020

इक बात समझनी है

इक बात समझनी है
हमें जान बचानी है
ज़िन्दगी और कुछ दिन
घर में ही बीतानी है

हाथ जमकर धोना है
धोते ही जाना है
धोने का मतलब तो
साबुन भी लगाना है
कुछ पल भर धोने से
इक उम्र चुरानी है

कोरोना को जाना है
जाकर मिट जाना है
बादल है ये कुछ पल का
छा कर ढल जाना है
परछाइयाँ रह जातीं
रह जाती निशानी है

हम फूल हैं बगिया के
जो फूल महकते हैं
हम बात समझते हैं
हाँ ख़ूब समझते हैं
'गर बात है लॉकडाउन की
वो बात भी मानी है 

राहुल उपाध्याय । 15 अप्रैल 2020 । सिएटल

मूल शब्द: संतोष आनन्द 
मूल संगीत: लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल 
शब्दों में फेर-बदल: राहुल
बाक़ी सब: उमेश


Wednesday, April 15, 2020

ब्रश बदल-बदल कर ब्रश कर रहा हूँ

ब्रश बदल-बदल कर ब्रश कर रहा हूँ
नीरस-सपाट ज़िन्दगी में रंग भर रहा हूँ

नाख़ून भी तो बढ़ते नहीं
कि रोज़ काट लूँ
हमदर्द भी तो साथ नहीं 
कि दर्द बाँट लूँ
ख़ुद ही कर्ता, ख़ुद ही हर्ता, 
हर किरदार कर रहा हूँ

क्या करूँ, क्या ना करूँ
कुछ सूझता नहीं 
समय है इतना मगर
कुछ सूझता नहीं 
मीलों का है सफ़र और
ट्रैडमील पे चल रहा हूँ

सुबह हुई, शाम हुई
अब हुई रात है
व्हाट्सैप पर आपका
पल-पल का साथ है
कहना जो चाहता हूँ
कहने से डर रहा हूँ

राहुल उपाध्याय । 15 अप्रैल 2020 । सिएटल

Tuesday, April 14, 2020

सवाल यूँ आइने से न पूछा करो

सवाल यूँ आइने से न पूछा करो
बचपना न बेसबब दिखाया करो

न जाने कौन क़त्ल कर बैठे
नज़रें किसी से न मिलाया करो

मुसीबत न कहीं गले पड़ जाए
गले किसी को न लगाया करो

न जाने कौन जान ले बैठे
हाथ किसी से न मिलाया करो

न जाने कब कर जाओ कूच
पास किसी के न जाया करो

टूटते हैं सम्बन्ध तो टूट जाने दो
भावुकता में न जान जाया करो

राहुल उपाध्याय । 14 अप्रैल 2020 । सिएटल

Wednesday, April 8, 2020

कोविड और हम

आँकड़े भयावह हैं। हर तरफ़ तबाही है। पिछले 24 घण्टों में 7,326 मौत के घाट उतर गए। यानि हर 12 सेकण्ड में कहीं न कहीं कोई न कोई कोरोना बीमारी से तड़प कर गुज़र गया। 

लेकिन इन में से कोई भी चेहरा हमारा जाना-पहचाना नहीं। सो हमें कुछ महसूस ही नहीं होता है। जैसे कि किसी आतंकवादी घटना में पचासों गुज़र जाए, हमें कुछ नहीं होता। 

एक काल्पनिक पात्र आनन्द पर्दे पर मरता है, तो हमारी आँखें भर आती हैं। 

हम कहानी पर रोते हैं। आँकड़ो पर नहीं। 

यह कहानी है अमेरिका के एक बड़े शहर डिट्रोयट के बस ड्राईवर की। उसने फ़ेसबुक पर एक वीडियो डाला कि कैसे एक यात्री बहुत लापरवाही से उस पर खाँस रही थी। उसे डर था कहीं वह संक्रमित न हो जाए। और जिसका डर था वही हुआ। वह संक्रमित भी हुआ और वह अब इस दुनिया में नहीं है। 

जो नहीं चेतें हैं, अब चेत जाए। 

किसी अनजानी शक्ति से रक्षा की आस न रखें। आज हनुमान जयंति पर फिर वही घिसी-पिटी चौपाइयाँ दौड़ रहीं हैं। संकट हरे मिटे सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा। सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना। 

जितना भी जप लो। जिसको भी जप लो। कोई रक्षा करने वाला नहीं है। मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर क्यूँ बन्द हैं? क्यूँकि जप, तप, भजन, प्रवचन से कुछ हासिल नहीं होता। 

कई जगह तो अफ़वाह भी उड़ रही है कि शाकाहारी सुरक्षित हैं। जबकि इसका कोई प्रमाण नहीं है। 

घर में रहें। सुरक्षित रहें। ज़रूरी काम से यदि कहीं जाए तो दूरी बनाए रखें एवं शीघ्र वापस लौट आए। 


राहुल उपाध्याय । 8 अप्रैल 2020 । सिएटल

Sunday, April 5, 2020

काल का ग्रास

कभी किसी रविवार को
यदि इतवारी पहेली का हल न भेजूँ
तो समझ लेना मैं काल का ग्रास बन गया हूँ

ऐसा नहीं कि 
मैंने एहतियात नहीं बरती
माँ के साथ मन्दिर गया
होली मनाई
दूध-मिश्री-सब्ज़ी लेने बाज़ार गया
नवरात्रि के लिए नारियल-फूल लाया
लहलहाते जौ बहते पानी में छोड़े
कॉस्टको से गाड़ी में तेल भरा
और कोरोना मुझे डस गया

या कि
मैंने ताली-थाली नहीं बजाई
या निर्धारित समय पर दीप नहीं जलाए
और नौ मिनट की अवधि माप न सका

मैंने डायबीटीज़ पर विजय पा ली है
रोज़ कम से कम पाँच मील चलता हूँ
सिर्फ सब्ज़ी खाता हूँ
और सूर्यास्त के बाद कुछ भी नहीं 

फिर भी ऐसा नहीं कि
सारे रविवार मेरे हों
न बुद्ध के हुए, न राम के, न गाँधी के

एक दिन तो ऐसा आएगा ही
जब मैं हल नहीं भेज पाऊँगा 
तब समझ लेना मैं काल का ग्रास बन गया हूँ

लेकिन मेरी आत्मा की शांति प्रार्थना मत करना
वह तो स्थितप्रज्ञ है
वह क्यूँ अशांत होने लगी
न ही झूठी प्रशंसा करना
या कोई अच्छा काम ढूँढने की कोशिश करना

जो तुम आज, अभी मेरे बारे में सोच रहे हो
वही सच है
उसे नकारना मत
मुझे वही राहुल ज़िन्दा रखना है
कोई नक़ली राहुल नहीं 

मैं जैसा हूँ
मुझे वैसा ही रहने देना
उस पर फ़िल्टर नहीं लगाना
कुछ और ही नहीं बना देना

राहुल उपाध्याय । 6 अप्रैल 2020 । सिएटल

Friday, April 3, 2020

मिटती है हर बीमारी

सुना है इन दिनों तुम बहुत हाथ धो रही हो

चाहे कितनी ही कोशिश कर लो
मुझसे हाथ तुम धो न सकोगी
ख़ुशबू जो मेरी रग-रग में बसी है
किसी भी साबुन से खो न सकोगी
छ: फ़ुट की दूरी रख लो सबसे
खुद को मुझसे दूर कर न सकोगी
द्वार चाहे बन्द कर लो सारे
मन से मुझे निकाल न सकोगी
तमाम सामान भले उठ जाए दुकानों से
मुझ पर जो है भरोसा वो उठ न सकेगा
ऑनलाइन डिलिवर करवा लो सब कुछ
पर मुझसा दीवाना मिल ना सकेगा

रूमाल लगाओ
नक़ाब चड़ाओ
दस्ताने पहनो
भाप लो
पर इतना ज़रूर तुम भाँप लो
कि
महामारी आज नहीं तो कल गुज़र ही जाएगी
लेकिन दास्ताँ हमारी सदियों तक गाई जाएगी

कोशिश कर के देख ले 
दुनिया की दवा सारी
दिल की लगी नहीं मिटती है
मिटती है हर बीमारी

राहुल उपाध्याय । 3 अप्रैल 2020 । सिएटल

Thursday, April 2, 2020

न किया गिला

न किया गिला 
न किया शिकवा कभी
सर आँखों लिया 
जो भी मिला सिला कभी

हम भी तुम्हें 
बाँहों में लेते
जो होता मेहरबाँ 
तुझपे तेरा खुदा कभी

अब फ़ुरसत ही 
फ़ुरसत है रात-दिन
कोरोना दे राहत तो 
करें तस्सवुर-ए-जानाँ कभी

ये दूरी जो 
आज है सुरक्षा-कवच
क्या बन जाएगी 
न मिलने का बहाना कभी

बेख़ौफ़ है ज़िन्दगी 
और बेख़ौफ़ ही रहेगी
डरता जो राहुल 
घर छोड़ न यूँ आता कभी

राहुल उपाध्याय । 2 अप्रैल 2020 । सिएटल