कभी किसी रविवार को
यदि इतवारी पहेली का हल न भेजूँ
तो समझ लेना मैं काल का ग्रास बन गया हूँ
ऐसा नहीं कि
मैंने एहतियात नहीं बरती
माँ के साथ मन्दिर गया
होली मनाई
दूध-मिश्री-सब्ज़ी लेने बाज़ार गया
नवरात्रि के लिए नारियल-फूल लाया
लहलहाते जौ बहते पानी में छोड़े
कॉस्टको से गाड़ी में तेल भरा
और कोरोना मुझे डस गया
या कि
मैंने ताली-थाली नहीं बजाई
या निर्धारित समय पर दीप नहीं जलाए
और नौ मिनट की अवधि माप न सका
मैंने डायबीटीज़ पर विजय पा ली है
रोज़ कम से कम पाँच मील चलता हूँ
सिर्फ सब्ज़ी खाता हूँ
और सूर्यास्त के बाद कुछ भी नहीं
फिर भी ऐसा नहीं कि
सारे रविवार मेरे हों
न बुद्ध के हुए, न राम के, न गाँधी के
एक दिन तो ऐसा आएगा ही
जब मैं हल नहीं भेज पाऊँगा
तब समझ लेना मैं काल का ग्रास बन गया हूँ
लेकिन मेरी आत्मा की शांति प्रार्थना मत करना
वह तो स्थितप्रज्ञ है
वह क्यूँ अशांत होने लगी
न ही झूठी प्रशंसा करना
या कोई अच्छा काम ढूँढने की कोशिश करना
जो तुम आज, अभी मेरे बारे में सोच रहे हो
वही सच है
उसे नकारना मत
मुझे वही राहुल ज़िन्दा रखना है
कोई नक़ली राहुल नहीं
मैं जैसा हूँ
मुझे वैसा ही रहने देना
उस पर फ़िल्टर नहीं लगाना
कुछ और ही नहीं बना देना
राहुल उपाध्याय । 6 अप्रैल 2020 । सिएटल