Saturday, May 10, 2014

मामीसाब

मासी नहीं
माँ भी नहीं
माँ-सी हैं मगर मामी मेरी

छोटा सा था
भटकता सा था
पिता थे दूर विदेश में
इन्होंने ही थी उंगली थामी मेरी

न गुस्सा किया
न कभी दण्ड दिया
हमेशा मुस्करा के
भरी हामी मेरी

हमेशा 'आप' कहा
बड़ों सा आदर दिया
कभी नज़र न आई इन्हें
कोई खामी मेरी

मेरी पसंद-नापसंद अभी भी याद है
बीवी-बच्चों का भी करतीं लिहाज हैं
भगवान करे हर जन्म में
ये ही हो मामी आगामी मेरी

मैं जहाँ गया, ये मेरे साथ रहीं
अमिट इनकी मुझ पे छाप रही
जिस मामी का मुझ को प्यार मिला
उस मामी को लाखों सलामी मेरी

10 मई 2014
सिएटल । 513-341-6798

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1 comments:

Anonymous said...

बहुत ही सरल और भोले मन से लिखी, प्यारी सी कविता है! इसमें कठिन शब्द नहीं, गहरी बातें नहीं, complex wordplay नहीं - सिर्फ एक छोटे से बेटे का अपने मामीसाब के लिए प्यार है।

एक बच्चे की उँगली थामना, उसे आँचल की छाँव में रखना, स्नेह और आदर देना, उसकी खामियां नहीं देखना, गुस्सा नहीं करना - यह तभी हो सकता है जब दिल बहुत बड़ा हो और उसमें असीम प्रेम हो।

अपने यादों और experiences को कविता के thread मे इस तरह पिरोना कि वो एक flow में बहें, आसान नहीं है। आपने बहुत ही सुंदर रचना लिखी है।

"जिस मामी का मुझ को प्यार मिला
उस मामी को लाखों सलामी मेरी"
"भगवान करे हर जन्म में
ये ही हो मामी आगामी मेरी"

भगवान आपके मन की बात ज़रूर पूरी करेंगे!