Sunday, May 11, 2014

माँ की प्रशंसा मैं कैसे करूँ?

माँ की प्रशंसा मैं कैसे करूँ?
अपनी खामियाँ मैं कैसे गिनूँ?
जो बीतीं हैं उस शख्स पर
उन यातनाओं को कैसे याद करूँ?

जो हुआ सो बहुत ही बुरा हुआ
किया मैंने भी कुछ अच्छा नहीं
जब कपड़े उतर चुके हैं खुद के
माँ की पूजा मैं कैसे करूँ?

19 साल तक जिसने पाला-पोसा
32 साल से उससे दूर हूँ मैं
झूठी बातें अब लिख के
किसे खुश करने की कोशिश करूँ?

क्या कहेंगी वो
और क्या कहूँगा मैं
कहने को जो था सब कहाँ जा चुका
कागद कारे अब क्यूँ नाहक करूँ?

11 मई 2014
सिएटल । 513-341-6798

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5 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना मंगलवार 13 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

Anonymous said...

"माँ की प्रशंसा मैं कैसे करूँ?
अपनी खामियाँ मैं कैसे गिनूँ?"

"क्या कहेंगी वो
और क्या कहूँगा मैं"

कविता पढ़कर दिल भर आया। हम माँ की प्रशंसा कर सकते हैं, पुरानी बातें याद कर सकते हैं, चिंतन कर सकते हैं कि माँ का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव रहा - मगर फिर भी हम इस रिश्ते को thoughts और words में पूरी तरह describe नहीं कर सकते। जब मन बहुत उदास होता है तो माँ की याद आती है। चाहे हम उन्हें अपना दुःख बताएं या न बता सकें, वो जान जाती हैं कि हम उदास हैं। हम उम्र में कितने भी बड़े हो जाएं मगर माँ सदा हमारा दुःख दूर करने की कोशिश करती हैं। वो हमारी सब कमियों और ग़लतियो के साथ हमें प्यार करती हैं। उनके गुस्से में भी प्यार ही होता है। माँ बस यही चाहती हैं कि हम जहाँ रहें - पास या दूर - खुश रहें और उनसे बात करें, उन्हें याद रखें। प्यार के सिवा माँ को हमसे और कुछ भी नहीं चाहिए।

कविता रावत said...

बिना कुछ कहे ही माँ का ह्रदय सब जान लेता है
..बहुत सुन्दर !

Anonymous said...

Rahul Ji,
The last four lines are so true. The funny thing is that we all have the same sentiments for our millions of mothers. As if, we are talking about Sun or Moon or the same individual we all have seen or met , and all of us are trying to describe the individual.
Thank you for such a lovely and sentimental treat.
Congratulations.
Om Mishra

Rahul Upadhyaya said...

ओम जी - मेरे ब्लॉग पर पधारने के लिए शुक्रिया. मैं आमतौर पर प्रशंसात्मक टिप्पणियों पर टिप्पणी नहीं करता हूँ. और खासकर ऐसी कविताओं की टिप्पणियों पर जिन्हें लिखने में मुझे दु:ख हुआ हो.

आपकी टिप्पणी मेरे लिए एक विशेष महत्व रखती है. आप पहले व्यक्ति हैं जो कि ekavita के सदस्य हैं, और जिन्होंने न केवल मेरे ब्लॉग को पढ़ा, बल्कि एक टिप्पणी भी लिखी और वो भी दिल से, ये नहीं कि - अति सुंदर, सुंदर अभिव्यक्ति आदि.

ऐसे ही स्न्हे बनाए रखें. अपने विचार प्रकट करते रहिए. और जहाँ आलोचना करनी हो आलोचना भी करें. संकोच न करें.