Thursday, January 19, 2017

कुछ लोग दान देते हैं

कुछ लोग दान देते हैं
मैं ध्यान देता हूँ
सड़क पर
स्क्रीन पर नहीं

मुझे देर हो जाती है
संदेशों के पढ़ने में 
उनका जवाब देने में
ईमेटिकॉन चिपकाने में 

मैं नहीं चाहता कि
मेरी वजह से
किसी की तस्वीर पर
बेवजह
फूल चढ़ें
किसी के नाम के आगे
स्वर्गीय लिखा जाए

मुझे देर हो जाती है
घनघनाते फोन उठाने में 
ऑफ़िस का काम निपटाने में 
किसी के घर पहुँच पाने में 

मुझे ख़ुशी है कि
मैं सही-सलामत हूँ
काम पर आता-जाता हूँ
लोगों से मिलजुल पाता हूँ

कुछ लोग दान देते हैं
मैं ध्यान देता हूँ

राहुल उपाध्याय | 19 जनवरी 2017 | सिएटल 






Tuesday, January 17, 2017

आँखें नहीं है जिनके पास वे भी कितना रोते हैं

आँखें नहीं है जिनके पास
वे भी कितना रोते हैं
बादल-बिजली-पवन-निशा
सारा गाँव भिगोते हैं 

अपनी क़िस्मत अपने हाथों
लिखने वाले लिखते हैं
बाक़ी सब पूर्व-लिखाई
गंगा तट पे धोते हैं

कितना कुछ है अपने अन्दर 
कि अम्बर तक का अम्बार भी कम है
फिर भी कुछ खो जाने के डर से
चिन्तित हो के सोते हैं

वर्तमान का कुछ मान नहीं है
सब अगला या पिछला है
कभी कटाई करते हैं तो
बीज नया कभी बोते हैं

पोते-पोती बड़े हो गए
लीपा-पोती नहीं गई
कभी किसी की ख़ामी ढक ली
तो ज़ुल्म नया कोई ढोते हैं

व्रत के वृत्त से बाहर आओ
तो कुछ समझा पाऊँ मैं
कि उपवास और उपासना में 
कितना समय हम खोते हैं

17 जनवरी 2017
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Monday, January 16, 2017

अर्थ का अनर्थ

ठण्ड में सब अकड़ जाते हैं
गर्मी से पिघल जाते हैं
और फिर भी ये उपदेश है
कि बनती कोशिश ठण्डे रहो

नागपुर में नाग नहीं
मूँगफली में मूँग नहीं
फिर भी ये हिदायत है
कि समझदारी से काम लो

मोहब्बत एक मोह-पाश है
जो लेती सबको बाँध है
और तानाशाह बदनाम हैं
कि करते सबको क़ैद हैं

कारगर होते कारागार
तो आज भी होता अंग्रेज़ों का राज
कारसाज़ का नहीं था इसमें हाथ
हमने किया ख़ुद अपना उद्धार 

शब्दों के मायनों की माया को
कब, कौन, कहाँ समझ पाया है
कितना ही चाहे समझ लो
अर्थ के अनर्थ से कौन बच पाया है

16 जनवरी 2017
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Sunday, January 15, 2017

समन्दर की, बवण्डर की बातों का क्या बुरा मानना

समन्दर की, बवण्डर की
बातों का क्या बुरा मानना
बे-सर-पैर की शख़्सियत की
बातों का क्या बुरा मानना

जीवन के चमन में 
फूल भी हैं, ख़ार भी
हर किसी उपज की
बातों का क्या बुरा मानना

हमने ही ठानी थी
कि खेलेंगे खेल नियमों से
अब कोच की, अम्पायर की
बातों का क्या बुरा मानना

सूरज भी ढलता है
सितारे भी चमक खोते हैं
फिर तख़्त की, ताज की
बातों का क्या बुरा मानना

जो कल था, कल फिर होगा
कल-कल का कलरव कालान्तर रहेगा
ब्रेकिंग न्यूज़ चैनल की
बातों का क्या बुरा मानना

15 जनवरी 2017
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Wednesday, January 11, 2017

Telepathy

मैं वही अख़बार पढ़ता हूँ

जो तुम पढ़ती हो

मैं उसी वक़्त पढ़ता हूँ

जब तुम पढ़ती हो

मैं वही पन्ने पढ़ता हूँ

जो तुम पढ़ती हो


यह सब इसलिए कि

मुझे टेलिपैथी नहीं आती


11 जनवरी 2017

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Sunday, January 8, 2017

लहरें जम गईं फ़िज़ा थम गई

लहरें जम गईं 
फ़िज़ा थम गई
मन की बात
मन में रह गई

स्मार्ट है फोन
और हम भी डम्ब नहीं 
करें, करें में ही
शाम ढल गई

लम्बा सफ़र था
सम्हल के चला
जेब में थी ख़ुशियाँ 
जेब में ही सड़ गई

होने को ज़िन्दगी 
शादाब हो भी सकती थी
अनुबंधों की स्याही
स्याह कर गई

आईने को आईना
कोई दिखाए तो कैसे
उलटा सीधा देखने की
आदत जो पड़ गई

8 जनवरी 2017
सिएटल | 425-445-0827
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