लहरें जम गईं
फ़िज़ा थम गई
मन की बात
मन में रह गई
स्मार्ट है फोन
और हम भी डम्ब नहीं
करें, न करें में ही
शाम ढल गई
लम्बा सफ़र था
सम्हल के चला
जेब में थी ख़ुशियाँ
जेब में ही सड़ गई
होने को ज़िन्दगी
शादाब हो भी सकती थी
अनुबंधों की स्याही
स्याह कर गई
आईने को आईना
कोई दिखाए तो कैसे
उलटा सीधा देखने की
आदत जो पड़ गई
8 जनवरी 2017
सिएटल | 425-445-0827
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