Sunday, January 8, 2017

लहरें जम गईं फ़िज़ा थम गई

लहरें जम गईं 
फ़िज़ा थम गई
मन की बात
मन में रह गई

स्मार्ट है फोन
और हम भी डम्ब नहीं 
करें, करें में ही
शाम ढल गई

लम्बा सफ़र था
सम्हल के चला
जेब में थी ख़ुशियाँ 
जेब में ही सड़ गई

होने को ज़िन्दगी 
शादाब हो भी सकती थी
अनुबंधों की स्याही
स्याह कर गई

आईने को आईना
कोई दिखाए तो कैसे
उलटा सीधा देखने की
आदत जो पड़ गई

8 जनवरी 2017
सिएटल | 425-445-0827
tinyurl.com/rahulpoems 


इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


0 comments: