जो गाते थे कभी
गुणगान मेरे
मिटाने लगे हैं
नाम-ओ-निशान मेरे
हमने भी लिखे थे
दीवानगी के हर्फ़
भजनों से भरे हैं
आज दीवान मेरे
मैंने पहले ही कह दिया था
कि न देखो शक्ल अपनी
आईने से हुए हैं कई दोस्त
लहूलुहान मेरे
जंगल होता तो
चल भी जाता
मुखौटा ओढ़े बैठे हैं
मेहमान मेरे
आप ख़ुश हैं
तो ख़ुश रहिए, मुझे क्या
बस ताक़ीद है कि
फटें न कान मेरे
मौक़ा भी होगा
और दस्तूर भी
गले लगेगी शमा
श्मशान मेरे
6 जनवरी 2017
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