Saturday, December 30, 2023

इतवारी पहेली: 2023/12/31


इतवारी पहेली:


इस पार कॉफी है, उस ## # #

जहाँ देखो वहाँ जश्न है, #%# #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 7 जनवरी 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 31 दिसम्बर 2023 । विलिंगेन-श्वानिंगेन (जर्मनी)



Re: इतवारी पहेली: 2023/12/24



On Sun, Dec 24, 2023 at 5:45 AM Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> wrote:

इतवारी पहेली:


ये ले आए हो ## ## #?

मालिक से नहीं, #### #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 31 दिसम्बर 2023 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 24 दिसम्बर 2023 । पेरिस 



Friday, December 29, 2023

हम तुमसे मुहब्बत करते हैं

हम तुमसे मुहब्बत करते हैं 

चुपचाप मगर नहीं रहते हैं 

इक गीत लिखा, इक साज़ चुना

और सब से हम ये कहते हैं 


जब आग लगी, तुम पास मिली

जब प्यास बुझी, तुम खो सी गई

हम साथ रहे, हम दूर रहे

नग़मे हज़ारों कहते हैं 


कभी सोच लिया तुम मेरी नहीं

कभी मान लिया, तुम मेरी नहीं 

अब चैन नहीं, आराम नहीं 

दिन-रात तुम्हें ही रटते हैं 


जगते भी नहीं, सोते भी नहीं

दिन-रात कभी होते ही नहीं 

मेरा सूरज तुम, मेरी चंदा तुम

मेरे प्राण तुम्हीं में बसते हैं 


राहुल उपाध्याय । 30 दिसम्बर 2023 । अम्स्टर्डम से स्विट्ज़रलैंड जाते हुए 






इक मन्दिर है, इक जलसा है

इक मन्दिर है, इक जलसा है

सब भक्तों की रची हुई माया है

वो कहाँ इन झंझट में 

पड़ता है न पड़ने वाला है 


हम लाख कहे वो ही कर्ता

फिर भी पूजे जाए कार्यकर्ता 

इसकी-उसकी हम जय करते

जय राम से पेट नहीं भरता 


अच्छा है क्या और ग़लत है क्या

हम-आप कहाँ ये समझेंगे 

जो आज ग़लत है कल सही होगा

हम भी तो हवा में बहकेंगे 


है कौन यहाँ जो सोचे कुछ 

सब भीड़ में शामिल रहते हैं 

है भेड़ सभी आदम हैं जो

बस पाँव पे दो वे चलते हैं 


राहुल उपाध्याय । 29 दिसम्बर 2023 । अम्स्टर्डम

Wednesday, December 27, 2023

पारूल

पारूल मध्यम वर्ग से है। काम भी करती है जिससे वेतन मिलता है। घर का काम भी करती है जिससे वेतन नहीं मिलता है। कई कष्ट, कई यातनाएँ सहती है। सास-ससुर-देवरानी सब से। सब अपनी क़िस्मत समझ सह लेती है। ईश्वर में विश्वास है। प्रारब्ध और कर्मों के हिसाब के गुणा-भाग से अच्छी तरह से परिचित है। पति है पर पति से भी कोई आस नहीं। उसे भी वह दोष नहीं देती है। जो है, सो है। जो मिला है उसी में वो ख़ुश है। दुखी कभी नहीं होती है। 


ऑफिस का काम मन लगा कर करती है। काम से उसे वह सब मिला जो घरवाले उसे कभी न दे सके। वहाँ उसको इज़्ज़त मिली। सम्मान मिला। यथोचित पदोन्नति भी। 


काम के सिलसिले में उसे एक बार पेरिस जाना पड़ा। बाँछें खिल आईं। वह भी तीन महीनों के लिए। इसी बहाने उसे घर के काम से तीन महीने की छुट्टी मिल गई। और हर तरह की आज़ादी भी। जो करना चाहे, कर सकती है। जो खाना चाहे, खा सकती है। जब सोना चाहे, सो सकती है। जब तक सोना चाहे, सो सकती है। 


लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, जब तक हम सिस्टम से लड़ते नहीं है, हमें उसी सिस्टम में जीना आसान लगता है। हम उसी सिस्टम के पक्षधर बन जाते हैं। उसी में अपनी भलाई समझते हैं। जो खाते आ रहे हैं, वही खाते हैं। जो पहनते आ रहे हैं, वही पहनते हैं। 


मुझे याद है जब हम स्कूल से कॉलेज में गए, स्कूल की तरह सबकी कोई निर्धारित सीट नहीं थी। लेकिन हम सब रोज़ एक ही जगह बैठते थे। कॉलेज में यूनिफ़ॉर्म भी नहीं थी। लेकिन हम सब अपने-अपने ढर्रे के ही कपड़े पहनते थे। जो साड़ी पहनती थी, वो साड़ी पहनती थी। जो सलवार सूट पहनती थी, वो सलवार सूट पहनती थी। जो जीन्स, वो जीन्स। लड़कों का भी यही हाल था। जो कुर्ता-पजामा पहनता था, वो कुर्ता-पजामा ही पहनता था। जीन्स वाला जीन्स। 


पारूल पेरिस में रही तीन महीने, लेकिन कुछ अलग नहीं किया। न सिगरेट पी। न दारू पी। न चिकन खाया, न फ़िश। न बार गई मौज-मस्ती के लिए। 


हाँ, घूमी-फिरी बहुत। सारे म्यूज़ियम नाप डाले। सारे ऐतिहासिक भवनों को आँखों से पी गई। दुकानों पर भी खूब गई। बस आँखें ही सेंकीं। ख़रीदा कुछ भी नहीं। हर नोट का अठारह से गुणा कर के दिल बैठ जाता था। 


बस एक स्कर्ट-ब्लाउज़ इतना पसंद आया कि आज बीस बरस बाद भी उसकी एक-एक चीज़ अच्छी तरह से याद है। उसका रंग। उसकी ख़ुशबू। उसका टेक्स्चर। सब का सब तन-मन में समाया हुआ है। बहुत मन किया कि इसे तो ले ही लूँ। ऑफिस वाले पेरिस के हाथ-खर्च और खाने-पीने के लिए कुछ तय रक़म रोज़ाना के हिसाब से दे भी रहे थे। उसमें से पैसे बच भी रहे थे। 


उसने स्कर्ट कभी नहीं पहनी थी शादी के बाद। शादी के पहले भी प्रायमरी स्कूल तक ही पहनी। उसके बाद कभी नहीं। न जाने क्यों मन हो आया कि पेरिस में कौन मुझे रोकेगा। पहन कर तो देख लूँ। लेकिन मन की बात मन में ही रह गई। नहीं ख़रीदी तो नहीं ख़रीदी। 


अब रिटायर होने के बाद। विधवा होने के बाद। एक दिन उसी स्कर्ट जैसी स्कर्ट ऑनलाइन ऑर्डर कर ही ली। आ गई तो बहुत खुश हुई। बेटी को दिखाई। बेटी को इतनी पसंद आई कि उसने रख ली। अब इस उम्र में कोई कुछ माँग ले तो देने में बहुत अच्छा लगता है। सो दे दी। क़िस्मत देखो। तब से अब तक तीन बार मँगवा चुकी है। लेकिन सब कोई न कोई ले गया। 


इस कहानी का अंत ऐसे नहीं होना चाहिए। मेरा उसके ईश्वर से निवेदन है कि हिसाब में कुछ धांधली करें और पारूल को एक बार स्कर्ट-ब्लाउज़ पहनने दें। और हाँ एक सेल्फ़ी भी होनी चाहिए ताकि सबूत रहे कि स्कर्ट पहनी थी कभी प्रौढ़ावस्था में। 


राहुल उपाध्याय । 28 दिसम्बर 2023 । अम्स्टर्डम

यूरोप

यूरोप में घूमने का एक अपना अलग रोमांच है। एक तो इतिहास में इसके शहरों का महत्वपूर्ण स्थान है। चाहे युद्ध हो या राजनीति, ये शहर प्रमुख रहे हैं। लंदन, पेरिस, बर्लिन। इनके बिना बीसवीं शताब्दी की मुख्य घटनाओं का वर्णन नहीं किया जा सकता। 


आगे जाकर जब अमेरिका में रहने लगा तो नॉरमंडी बीच का भी नाम सुना जहां की ऐतिहासिक विजय के बाद ही द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुआ। क्रिस्टोफ़र नोलन की फिल्म के बाद डनकर्क के बारी में भी जानकारी बढ़ी। 


जब मैं अम्स्टर्डम से पेरिस जा रहा था तो डनकर्क और नॉरमंडी बीच क़रीब से निकले। मानचित्र पर देखकर ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए। 


पेरिस की भव्य इमारतों के बीच साईन नदी पर नौका विहार के वक्त सोचता रहा कैसे वो दिन रहे होंगे जब इन इमारतों पर बमबारी का ख़तरा रहा होगा। कैसे हर घर से कोई युवा सेना में काम कर रहा होगा। कैसे नाज़ी सेना इन्हीं सड़कों पर घूम रही होगी। 


अम्स्टर्डम तक हिटलर का आतंक था। सिर्फ़ जर्मनी से ही नहीं, यहाँ से भी लोग घरों से निकालकर कंसंट्रेशन कैम्प में ज़िन्दा मौत के घाट उतार दिये जा रहे थे। हिटलर की सेना यहाँ भी आईं और एन फ़्रेंक जैसे लाखों लोगों को लेकर चले गई।  


अद्भुत शहर हैं ये। अद्भुत देश हैं ये। अद्भुत लोग हैं ये। 


एक तरफ़ हिटलर की सेना। एक तरफ़ एन को बचाने वाले जैसे लोग। एक तरफ़ एन का पता हिटलर की सेना को देनेवाले लोग। 


सब यहीं था। सब यहीं थे। मात्र पचहत्तर-अस्सी वर्ष पहले। 


और उससे पहले थे महान कलाकार। लियोनार्दो द विंची। मिकेलांजिलो। दांते। वेन गो। रेम्ब्राण्ट। 


महान वैज्ञानिक। न्यूटन। आइंस्टाइन। हुक। हैली। डार्विन। बर्नौली। मार्कोनी। वॉट। एम्पियर। क्यूरी। हर्ट्ज़। मैक्सवेल। यूलर। फर्मेट। 


महान लेखक। शेक्सपीयर। शॉ। शैली। कीट्स। बर्ट्रेंड रसल। 


बेल्जियम जैसे छोटे देश के छोटे शहर में बारहवीं शताब्दी के महल आज भी उस शहर की शोभा बढ़ा रहे हैं। आज भी मुझ जैसे पर्यटक को चकित कर रहे हैं। 


राहुल उपाध्याय । 27 दिसम्बर 2023 । ब्रसल्स 

Tuesday, December 26, 2023

कण-कण में जिसका वास है

कण-कण में जिसका वास है 

उसका भी अब घर-बार है

भक्तगणों का घमंड तो देखो

कहते किया हमने तैयार है 


उसके बिना कुछ हो न पाए

फिर भी खुद को शाबाशी दे रहे

नेता-चारण सब हैं लट्टू 

कर रहे चीत्कार हैं  


पूजा आदि वहाँ हैं होती

जहां शांति का निवास है

भीड़-भाड़ में शो-बाज़ी करना

पूजा नहीं अहंकार है


मन्दिर है, मन्दिर ही रखो

नहीं करो इतना हंगामा 

पढ़ो-लिखो, कुछ काम करो

यही समय की पुकार है


राहुल उपाध्याय । 27 दिसम्बर 2023 । अम्स्टर्डम से ब्रसल्स जाते हुए 



फूल जो था वो बिखर गया

फूल जो था वो बिखर गया

जाने कहाँ-कहाँ से गुज़र गया


मैं चाहता था जिसे कोई और था

ये तो नज़रों से मेरी उतर गया


जो कहता था मैं ऐसा हूँ 

वो आज न जाने किधर गया


हर बार हुआ ये साथ मेरे

साथी बन के कोई मुकर गया 


मैं रह गया वैसा का वैसा ही

और ज़माना सारा सुधर गया


राहुल उपाध्याय । 27 दिसम्बर 2023 । अम्सटर्डम


यही वो गुफ़ा थी

यही वो गुफ़ा थी

जिसमें मरी दुआ थी

कहते जिसे डायना थे

लगती वो आईना थी


घर नहीं, महल था वो

उसके लिए पिंजरा था वो

थी तो वो बुलबुल मगर

ख़ुद की आवाज़ पे कोई हक़ ना था


थी रजवाड़े-रियासत की दौलत

थी आसन्न रानी की बहू

थी भावी कर्णधारों की पत्नी-माँ 

तज दिया सब कुछ मगर


ज़िन्दगी बर्बाद हुई

हीरे-जवाहरातों के शोर में 

मौत भी आई तो कैसे

दनदनाती दौड़ में


क्या दुआ, क्या प्रार्थना 

क्या नहीं था उसके पक्ष में

गाँव की गंवार की माफ़िक़ 

मर गई थी वो ब्याह के


नारी की ही ज़िन्दगी 

क्यों अक्सर बिगड़ जाती है 

ब्याह से?

क्यों घर से बेघर होना ही 

लिखा है उसके भाग्य में?

क्यूँ नहीं जाती है वो रोज़ 

घर से निकल के काम पे?

क्यूँ बे-वेतन के काम प्राथमिक 

और बाक़ी सब हैं ताक पे?


राहुल उपाध्याय । 26 दिसम्बर 2023 । अम्सटर्डम







Monday, December 25, 2023

क्या राम या कृष्ण ने कभी

क्या राम या कृष्ण ने

कभी बच्चों को गोदी में खिलाया है?


क्या राम या कृष्ण ने

कभी सब्ज़ी-तरकारी काटी है?


क्या राम या कृष्ण

कभी बीवी-बच्चों को लेकर ससुराल गए हैं?

रहे हैं?


क्या राम या कृष्ण ने

कभी डिशवाशर लोड किया है?

ख़ाली किया है?

कपड़े फ़ोल्ड किये हैं?


हम एन-आर-आई

राम या कृष्ण से सौ क़दम आगे हैं


राहुल उपाध्याय । 26 दिसम्बर 2023 । पेरिस से अम्स्टर्डम जाते हुए 

https://mere--words.blogspot.com/2023/12/blog-post_25.html?m=1



क्या राम या कृष्ण ने कभी

क्या राम या कृष्ण ने

कभी बच्चों को गोदी में खिलाया है?


क्या राम या कृष्ण ने

कभी सब्ज़ी-तरकारी काटी है?


क्या राम या कृष्ण

कभी बीवी-बच्चों को लेकर ससुराल गए हैं?

रहे हैं?


क्या राम या कृष्ण ने

कभी डिशवाशर लोड किया है?

ख़ाली किया है?

कपड़े फ़ोल्ड किये हैं?


हम एन-आर-आई

राम या कृष्ण से सौ क़दम आगे हैं


राहुल उपाध्याय । 26 दिसम्बर 2023 । पेरिस से अम्स्टर्डम जाते हुए 


Sunday, December 24, 2023

इंटरनेट की दुनिया में

इंटरनेट की दुनिया में

तमाम ट्रैवेल ब्लॉग्स हैं

वीडियो हैं

जहां जब चाहे

दुनिया के किसी भी शहर

में घूमा जा सकता है 

पर्यटक स्थल देखे जा सकते हैं 

लेकिन फिर भी कुछ लोग

मेरे स्टेटस से 

मेरी पोस्ट्स से

भ्रमण करते हैं 

अच्छा लगता है 

मैं भी अकेलापन महसूस नहीं करता

वे सब मेरे साथ चलते हैं 

उन्हें मेरी पोस्ट्स में अपनापन दिखता है 


वीडियो में कोई अपना दिख जाए तो

जुड़ाव हो जाता है 

लगाव बढ़ जाता है 


राहुल उपाध्याय । 25 दिसम्बर 2023 । पेरिस 


Saturday, December 23, 2023

इतवारी पहेली: 2023/12/24


इतवारी पहेली:


ये ले आए हो ## ## #?

मालिक से नहीं, #### #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 31 दिसम्बर 2023 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 24 दिसम्बर 2023 । पेरिस 



Re: इतवारी पहेली: 2023/12/17



On Sun, Dec 17, 2023 at 4:50 AM Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> wrote:

इतवारी पहेली:


हो गई है उम्र ### #

फिर भी न बात ## ##


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 24 दिसम्बर 2023 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 17 दिसम्बर 2023 । अम्सटर्डम 



उसे मालूम है कि

उसे मालूम है कि

अभी रात की दो बज रही है 

फिर भी उसने फ़ोन किया 

मुझे अच्छा लगा


उसे मालूम है कि

मैं अभी घूमने निकला हूँ 

फिर भी उसने फ़ोन किया 

मुझे अच्छा लगा


उसे मालूम है कि

मैं अभी मीटिंग में हूँ 

फिर भी उसने फ़ोन किया 

मुझे अच्छा लगा


कोई अपना होने का

अपनेपन का

अहसास दिलाता रहे 

अच्छा लगता है 


राहुल उपाध्याय । 23 दिसम्बर 2023 । अम्सटर्डम से पेरिस जाते हुए 


Friday, December 22, 2023

मैं खुश हूँ कि

मैं खुश हूँ कि

मेरी दिनचर्या एक जैसी नहीं है

कि

उठते ही चाय पी

अख़बार पढ़ा 

नाश्ता किया

सगे-सम्बन्धियों से बात की

दो-चार कदम चल के

दोपहर का भोजन किया 

सो गए और

फिर चाय पी

फिर भोजन किया

टीवी देखा

और सो गए 


मैं तन्मयता से टिकट बुक कर रहा था

सस्ती से सस्ती डील मिल रही थी

गिनती की ही सीटें बची थीं

एक फ़ोन आया 

और मैं लैपटॉप बंद कर

बातों में उसकी खो गया


मैं देर रात फ़िल्म देख कर आया 

समीक्षा लिखी

पोस्ट की

सोने ही लगा था कि

एक फ़ोन आया 

और मैं हज़ारों आँखों से जाग गया


मैं टेनिस बॉल मशीन से खेलने के लिए

जूते पहन ही रहा था 

कि एक फ़ोन आया 

और मैं सोफ़े में धँस के

बैठ गया


पर्यटक स्थलों के भ्रमण के लिए

मैं ट्रेन पकड़ने वाला था

फ़ोन आया और रूक गया

दुःख सुनकर दुख हुआ 

फिर भी कुछ हिम्मत बढ़ाई 

अपनी-उसकी नैया पार लगाई


पड़ोसी के यहाँ मैं

जा ही रहा था

कि दूर-देश से न्यौता आया

और मैं अनिश्चित काल के लिए

देश छोड़ विदेश निकल आया 


ये विघ्न नहीं 

ख़लल नहीं 

दिनचर्या में बाधक नहीं 

मैं खुश हूँ कि

मेरी दिनचर्या एक जैसी नहीं

जो सोचा 

वो कभी हुआ नहीं 


राहुल उपाध्याय । 23 दिसम्बर 2023 । अम्स्टर्डम और पेरिस के बीच