मैं खुश हूँ कि
मेरी दिनचर्या एक जैसी नहीं है
कि
उठते ही चाय पी
अख़बार पढ़ा
नाश्ता किया
सगे-सम्बन्धियों से बात की
दो-चार कदम चल के
दोपहर का भोजन किया
सो गए और
फिर चाय पी
फिर भोजन किया
टीवी देखा
और सो गए
मैं तन्मयता से टिकट बुक कर रहा था
सस्ती से सस्ती डील मिल रही थी
गिनती की ही सीटें बची थीं
एक फ़ोन आया
और मैं लैपटॉप बंद कर
बातों में उसकी खो गया
मैं देर रात फ़िल्म देख कर आया
समीक्षा लिखी
पोस्ट की
सोने ही लगा था कि
एक फ़ोन आया
और मैं हज़ारों आँखों से जाग गया
मैं टेनिस बॉल मशीन से खेलने के लिए
जूते पहन ही रहा था
कि एक फ़ोन आया
और मैं सोफ़े में धँस के
बैठ गया
पर्यटक स्थलों के भ्रमण के लिए
मैं ट्रेन पकड़ने वाला था
फ़ोन आया और रूक गया
दुःख सुनकर दुख हुआ
फिर भी कुछ हिम्मत बढ़ाई
अपनी-उसकी नैया पार लगाई
पड़ोसी के यहाँ मैं
जा ही रहा था
कि दूर-देश से न्यौता आया
और मैं अनिश्चित काल के लिए
देश छोड़ विदेश निकल आया
ये विघ्न नहीं
ख़लल नहीं
दिनचर्या में बाधक नहीं
मैं खुश हूँ कि
मेरी दिनचर्या एक जैसी नहीं
जो सोचा
वो कभी हुआ नहीं
राहुल उपाध्याय । 23 दिसम्बर 2023 । अम्स्टर्डम और पेरिस के बीच
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