इतनी नादान है कि
सब का सब कहती है मुझे
क्या बताना है, छुपाना है
नहीं सोचती है
धड़कनें ला के
रख देती है हाथों में मेरे
कहती है गिन लो, चूम लो
सब इजाज़त है तुम्हें
हम हैं आज़ाद, बेपरवाह,
ख़ुश-ख़ुश नभ तक
क्योंकि मैं हूँ तेरी न आज
न कल, न कभी हो सकती हूँ
तू न डाँटे
न परखे
न सराहे हैं मुझे
न जले, न भुने
न टोके हैं मुझे
मेरी ज़िन्दगी
फ़क़त मेरी, मेरी, मेरी ही है
तू न माँगे हैं मुझे
और न मै माँगूँ तुझको
जब हुआ मेल
हुआ मेल जग से प्यारा
न कोई प्रश्न
न उत्तर
सब सहज जैसे बहती धारा
इतनी नादान है
वो सयानी
बुलबुल
राहुल उपाध्याय । 10 दिसम्बर 2023 । सिंगापुर
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