मैं रोज़ दाढ़ी बनाता हूँ
चाहे शनिवार हो, रविवार हो या बुख़ार हो
दाढ़ी बनाए बिना नहीं रह सकता
और तुम याद आए बिना नहीं रह सकती
ये क्या तौलिया ख़राब कर रहे हो
दस सेकंड बाद नहाना तो है ही
फिर पोंछना क्यों?
बिन पोंछे
मैं लाख घंटों भर नहा लूँ
शेविंग क्रीम
चेहरे पर कहीं न कहीं छूट ही जाती है
कान के पीछे
कान के नीचे
कान के अंदर
और जब कोई टोंक देता है तो
ऐसा लगता है कि धरती फट जाए
और उसमें मैं समां जाऊँ
क्या मुझे नहाना नहीं आता?
क्या मैं इतना गया गुज़रा हूँ?
पोंछना छूटता नहीं
तुम बाज आती नहीं
काश!
मैं भी तुम्हें टोकता
कुछ करने से
तो आज मैं भी तुम्हें याद आता
मैं तो ख़ुश था तुम्हारी हर एक बात से
तुम्हारी गुड मॉर्निंग से, तुम्हारी गुड नाइट से
तुम्हारे टूथब्रश से, तुम्हारे टूथपेस्ट से
वीडियो कॉल पे ब्रश करती हर फ़्रेम से
तुम्हारे जीवन के हर पल का मै सहभागी था
न हीर, न शीरी, न लैला कोई
होनी पिया के क़रीब जितनी तुम मेरे हुई
मैं लाख चाहूँ
कि तुम्हें दोष दूँ
तुम्हारी बुराइयों को गिन-गिन के
तुम्हें छोड़ दूँ
पर
कैसे करूँ
मैं कैसे करूँ
रोज़
दाढ़ी है उगती
और तुम और भी
राहुल उपाध्याय । 6 दिसम्बर 2023 । सिंगापुर
1 comments:
bahut achche!
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